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सब ठीक है ना!!

 

“सुना! नमिता बाल-बाल बच गई। सच में बच्चियों का भाग्य।” 

पूरा एक महीने ससुराल, मायके और कॉलेज में यही चर्चा। क्या हुआ? कैसे हुआ नमिता? ठीक हो! कोई कुछ और न सोचे बैठा हो यही सोच, हर पूछने वाले के सामने नमिता दोहराती रही— 

ऐसा है, पब्लिक रिलेशन क्लब के पति सदस्य हैं। सदस्यों की सपरिवार पिकनिक गंडीपेट की विस्तृत जल राशि का आनंद उठाने के लिए रखी गई थी। रास्ते में एक जगह कुछ देर के लिए दृश्य निहारने रुके। वहीं कुछ सीढ़ियाँ दिखीं जो एक पाट पर जा रही थीं। पानी छूने की चाह में सीढ़ियों से उतरी। परन्तु दुर्भाग्यवश पाट चिकना था और फिसल गई। लगा जीवन समाप्त। कुछ समय तक पानी के प्रवाह में डूबती-उतरती रही। सीढ़ियों पर ठहरी नन्ही बेटियों की मांँ-मांँ की पुकार सुनाई दे रही थी। 

देव कृपा से, मेरे दोनों हाथ थाम लें जितनी बड़ी चट्टान को मैंने थाम लिया। पति दीपक तैराक रहे हैं। उन्होंने साहस दिखाया, वहाँ ठहरे कुछ छात्रों को लेकर मानव‌ चेन बनाई और मुझे बाहर निकाल लिया। पति की समझ-बूझ और छात्रों से मिले सहयोग ने मेरा जीवन बचा लिया। यह सब सुन, सभी उसकी पीठ पर/कंधे पर स्नेह संतोष भरा हाथ रख देते। 

एक रोज़ कॉलेज से लौट कर नमिता रसोई में शाम की चाय बनाने के लिए चाय पत्ती शैल्फ़ से उतार रही थी। मामी सास, सत्या आँखों में प्रश्न लिए आ पहुँचीं। 

“हाय! नमिता क्या हुआ? कैसी है?” आँखों में आए आँसुओं को पल्लू से पोंछते हुए, जिन्हें नमिता नहीं देख पाई थी, बोलीं, “भगवान का लाख-लाख शुक्र है, हमारी बहू बच गई। बेटियों का क्या होता? दीपक का क्या वो तो दूसरी ले आता।” 

“तूने बहू ऐसा सोचा भी कैसे? जीवन प्रभु की देन है। अपने हाथ से उसे नहीं छीनना चाहिए।” 

नमिता हक्की-बक्की रह गई। कहा, “मामी क्या कह रही हो?”

“नहीं बेटा सच-सच बता घर में कुछ हुआ तो नहीं था? कहीं जिज्जी ने तो कुछ नहीं कहा? मुझे पता है वो कड़क हैं। या दीपक ने तो परेशान नहीं किया।” 

नमिता ने सिर पकड़ लिया। बड़बोली मामी के स्वभाव से ख़ूब परिचित है। उसने कहा, “मामी ऐसा कुछ . . . कुछ नहीं है। ये एक्सिडेंट था। काल टल गया। आप अपनी सोच की दौड़ को रोक लो। आपकी जिज्जी सुनेंगी तो आज की शाम की चाय इस घर में आख़री होगी।” 

मामी ने चुपचाप चाय के कप थामे और जिज्जी से बतियाने ड्राइंग रूम में चली गईं। 

अब नमिता की बारी थी। ईश्वर को बार-बार नमन करते हुए कहा प्रभु धन्यवाद तूने बचा लिया नहीं तो मेरा जाना कितने प्रश्न खड़े कर‌ जाता। 

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