सँभाल कर रखना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शैली जग्गी1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
सँभाल कर रखना उन लम्हों को—
जो जिए थे साथ में हमने!
उस नज़र को—
जिसमें मैंने देखा था चाँद को
और . . .
और तुमने मुझे उसी तरह!
उस प्रेम कहानी को जो,
गुनी थी हमने साथ-साथ!
और हाँ,
वह गीत भी जो—
हम मिलकर गुनगुनाते थे।
मैं . . . सुर में और तुम!
तुम तो बस
बिगाड़ने के अंदाज़ में!
मगर वह . . . शिक़न फेंकी
कि नहीं कहीं!
जो मेरे होंठों पर किसी का नाम—
आते ही!
तुम्हारे माथे पर उभर आती थी।
अच्छा!
अपनी अलार्म घड़ी
ज़रूर रखना पास में!
उसके बिना तुम्हारी नींद—
कहाँ ही खुलती थी!
और मैं बात करने के समय पर—
तुम्हारे इंतज़ार में'
घंटों जगी रहती थी।
और वह—
तुम्हारी बेवजह सपने देखने की,
आदत गई कि नहीं!
तो सँभाल रखना—
उसे!
मिलने पर!
समझाऊँगी,
कि सपने ज़रूर देखें!
चाहे पूरे हों न हों!
मगर उनका होना रातों को
हसीन कर देता है!
अरे, याद आया!
मेरा काजल लगा—
तुम्हारा रुमाल!
क्या अब भी है—तुम्हारे पास!
है तो देना ज़रा एक फूल बना दूँ,
उस पर!
अच्छा बताओ,
क्या अभी भी,
मेरी तस्वीर सिरहाने के
लिहाफ़ में—
छुपा कर सोते हो,
या बदल दी उसकी जगह!
और वह पहली पाती!
जिसमें सिर्फ़—
‘तुम्हारा और अपना’
नाम ही लिख पाई थी।
सँभाली है क्या!
अरे, तुमने तो मेरी
पाजेब का घुँघरू तक
सँभाला है!
फिर पाती!
पाती कैसे खो दोगे!
पूछ रहे हो मेरे पास—
क्या रखा है तुम्हारा . . .
सुनना ज़रा!
मेरे पास है—
तुम्हारी उस प्यारी,
नज़र का एहसास!
जिससे तुमने देखा मुझे हमेशा!
उस शिकन पर मेरी—
खिलखिलाती हँसी!
तुम्हारे बेसुर गुनगुनाने को
कितनी बार दोहराती हूँ मैं!
सुनती हूँ उस—
अलार्म की आवाज़ को!
जो दे जाती थी सिहरन!
कि तुम जग गए बतियाने को!
मैंने पीया है,
तुम्हारी लंबी बातों को—
सुनने के एहसास को!
मेरे काजल लगे रुमाल से
आती तुम्हारी ख़ुश्बू को!
तुम्हारे सिरहाने में—
रखी मेरी तस्वीर पर,
तुम्हारे रात भर के—
‘स्पर्श’ को भी,
जीया है मैंने!
मेरी पहली
पाती के—
प्रत्युत्तर में लिखा!
तुम्हारा वह लंबा ख़त!
उसका एक-एक
शब्द भी याद!
विरामचिह्नों सहित!
मेरी पाजेब का
घुँघरू टूटने पर!
तुम्हारा उसे ढूँढ़ना—
और पा लेने पर,
चहकती हँसी!
आज तक,
सँभाली है मैंने!
रखा है ये सब!
दिल के बंद उस-
सपनीले कोने में!
जहाँ मेरे,
और तुम्हारे बिना!
सभी का प्रवेश—
‘निषेध’ है . . .
शेष फिर।
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डॉ देवेंद्र कुमार 2025/01/06 08:15 PM
अत्युत्तम रचना। एक एक शब्द स्नेह भरा। कलम चलती रहे।