सच्चाई का हलुवा
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी1 Apr 2019
वह दुनिया का सबसे बड़ा बावर्ची था, ऐसा कोई पकवान नहीं था, जो उसने न बनाया हो। आज भी पूरी दुनिया को सच के असली मीठे स्वाद का अनुभव हो, इसलिये वह दो विशेष व्यंजन सच और झूठ के हलुवे को बनाने जा रहा था। उसे विश्वास था कि दुनिया इन दोनों व्यंजनों को खाते ही समझ जायेगी कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।
उसने दो पतीले लिये, एक में ‘सच’ को डाला दूसरे में ‘झूठ’ को। सच के पतीले में ख़ूब शक्कर डाली और झूठ के पतीले में बहुत सारा कडुवा ज़हर सरीखा द्रव्य। दोनों में बराबर मात्रा में घी डाल कर पूरी तरह भून दिया।
व्यंजन बनाते समय वह बहुत ख़ुश था। वह एक ऐसी दुनिया चाहता था, जिसमें झूठ में छिपी कडुवाहट का सभी को अहसास हो और सच की मिठास से भी सभी परिचित रहें। उसने दोनों पकवानों को एक जैसी थाली में सजा कर चखा।
और उसे पता चल गया कि सच फिर भी कड़ुवा ही था और झूठ मीठा... हमेशा की तरह।
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Nikesh Sharma 2019/04/01 03:36 AM
very nice.