सिर्फ़ तुम्हीं हो
काव्य साहित्य | कविता नव पंकज जैन1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
धूप तुम हो छाँव तुम हो,
पवन की शीतलता भी तुम्हीं हो।
सुबह तुम हो शाम तुम हो,
इनके मध्य रात्रि भी तुम्हीं हो।
सुख तुम हो, दुःख तुम हो,
दोनों का अहसास भी तुम्हीं हो।
हार तुम हो, जीत तुम हो,
दोनों का परिणाम भी तुम्हीं हो।
समुंद्र तुम हो, पृथ्वी तुम हो,
उनके ऊपर आकाश भी तुम्हीं हो।
भक्त तुम हो, भगवान तुम हो,
और मनुष्य भी तुम्हीं हो।
ज़िंदगी तुम हो, मौत तुम हो,
दोनों का अहसास भी तुम्हीं हो।
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भीकम सिंह 2022/12/24 03:37 PM
बेहतरीन रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।