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सिसकती ज़िंदगी 

 

प्रवासी पंजाबी कहानी

 

मूल-लेखक: रविंदर सिंह सोढी 
अनुवादक: प्रो. नव संगीत सिंह 

 

“हैलो . . . तमन्ना कहाँ है?” मैंने पूछा। 

“वो तो रात दस बजते ही गैस स्टेशन पर चली गई है। जल्दी में अपना मोबाइल भी भूल गयी।”

“क्या! गैस स्टेशन? कल शाम को तो वह छह बजे काम से घर आई थी। और दस बजे फिर चली गई?” मैंने आश्चर्य से कहा। 

“हाँ, काम से आते ही उसने मुझे बताया था कि गैस स्टेशन वालों का फ़ोन आया था, नाईट शिफ़्ट करने के लिए।”

“किस गैस स्टेशन पर?” 

“स्कॉट रोड वाला।”

“ठीक है, मैं वहीं जा रहा हूँ। मैं बेसमेंट के बाहर से तुम्हें फोन करूँगा, तुम उसका मोबाइल दे जाना,” इतना कह कर मैंने फोन रख दिया। 

मैंने घड़ी देखी। सात बज रहे थे। मैंने अनुमान लगाया कि उसकी शिफ़्ट आठ बजे तक होगी। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इतना काम कैसे कर सकती है? पिछले हफ़्ते भी उसकी तीन-तीन दिन की दो-दो शिफ़्टें थीं। रविवार को भी उसने छुट्टी नहीं की। वह पहले भी अक़्सर ऐसा ही करती थी। ना तो उसे अपने खाने-पीने का ध्यान है और ना ही अपनी सेहत का। मैंने कई बार उसे समझाने की कोशिश की है कि इतना काम नहीं करना चाहिए, लेकिन वह हँसकर टाल देती थी। एक-दो बार मैं उसके साथ बेसमेंट में रहने वाली लड़कियों के सामने उस पर ग़ुस्सा भी हुआ। उसके साथ रहने वाली लड़कियों ने भी बताया कि यह किसी की नहीं सुनती। कभी-कभी तो वह भूखी ही काम पर चली जाती है। उसके चेहरे से भी ऐसा लग रहा था जैसे वह अंदर ही अंदर किसी बात को लेकर परेशान हो। मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने अपना हृदय नहीं खोला। उसकी सहेलियों और मेरे क़रीबी दोस्तों को हमारी आपसी घनिष्ठता के बारे में पता था। मैंने तमन्ना से कई बार कहा था कि एक-दूसरे के क़रीब होने, एक-दूसरे को चाहने का मतलब यह नहीं होता कि कुछ समय इकट्ठे बिता लिया, चलते-फिरते एक-दूसरे का हाथ पकड़ लिया, या फिर एक-दूसरे को गले लगा लिया . . .। ऐसी घनिष्ठता लंबे समय तक नहीं टिकती, जब तक प्रेमी अपने सुख-दुख साझा न करें। तमन्ना ये बातें सुनकर ख़ूब हँसती थी या फिर ज़्यादा से ज़्यादा मेरे हाथों को अपने हाथों में भींच कर अपने होंठों पर रख लेती और कहती, “प्रवीण, तुम सिर्फ़ नाम से ही प्रवीण नहीं हो, बल्कि हक़ीक़त में भी प्रवीण हो। तुम्हारी बातें दार्शनिकों जैसी होती हैं। कई बार तो मुझे लगता है कि मैं किसी ऐसे इंसान के साथ पूरी ज़िंदगी कैसे बिताऊँगी जो इतनी बड़ी-बड़ी बातें करता है।” यह कहते हुए वह अपना सिर मेरे कंधों पर रख देती थी। 

मैंने अपना लैपटॉप बंद किया और वॉशरूम चला गया। मेरा ज़्यादातर काम घर से ही होता था। कोविड फैलने से कंप्यूटर-कर्मियों को फ़ायदा यह हुआ कि महामारी ख़त्म होने के बाद भी उन्हें घर से काम करने की आज़ादी मिल गई। दस-पंद्रह दिन बाद ज़रूरत पड़ने पर ऑफ़िस जाना होता। 

बीस मिनट में तैयार होकर मैंने तमन्ना की सहेली ख़ुशी को फ़ोन किया कि मैं आ रहा हूँ। ख़ुशी कहने लगी कि तुम दस मिनट पहले आ जाओ तो अच्छा है, मैं तुमसे तमन्ना के बारे में बात करना चाहती हूँ। मैं उसकी ये बात सुनकर हैरान रह गया। मुझे घबराहट हो रही थी कि ख़ुशी मुझे तमन्ना के बारे में कुछ उल्टी-सीधी बात न बता दे, लेकिन मैं ख़ुशी से तमन्ना का मोबाइल फोन लेने वाला था, इसलिए मुझे उसकी बात तो सुननी ही पड़ेगी। दस मिनट बाद मैंने धड़कते दिल से ख़ुशी के बेसमेंट की घंटी बजाई। वह मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। 

अन्दर जाकर मैं लिविंग रूम में पड़ी तीन कुर्सियों में से एक पर बैठ गया और कहा कि मैं चाय पी कर आया हूँ, इसलिए किसी औपचारिकता में न पड़े। ख़ुशी भी मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी। दरअसल, ये लिविंग रूम किचन का ही एक हिस्सा था। वहाँ दो और छोटे कमरे थे जिनमें तमन्ना, ख़ुशी और दो अन्य लड़कियाँ रहती थीं। केवल तमन्ना वर्क परमिट पर थी, बाक़ी तीन लड़कियाँ अभी पढ़ रही थीं। मैंने तमन्ना से कई बार कहा था कि अब उसे बड़े बेसमेंट में रहने वाली लड़कियों के पास शिफ़्ट हो जाना चाहिए, लेकिन उसने कहा कि ये तीनों लड़कियाँ अच्छी हैं, इसलिए वह अभी उन्हीं के साथ रहना चाहती है। एक साल बाद पढ़ाई पूरी करने के पश्चात जब उनका वर्क परमिट भी आ गया तो वह एक बड़ा बेसमेंट देख लेंगी। दूसरे, उसका काम भी यहीं पास में है, उसे केवल पंद्रह मिनट पैदल चलना पड़ता है, इसलिए वो बिना कार के काम चला रही है। 
ख़ुशी ने बताया कि तमन्ना हमेशा ख़ामोश और उदास-सी रहती है। वह उनसे खुलकर बात भी नहीं करती। कई बार तो वह रात में डर के मारे उठ जाती है और फिर काफ़ी देर तक जागती रहती है। पता नहीं वह हर वक़्त क्या सोचती रहती है? 

“क्या उसके घर से कभी फोन आता है?” मैंने ख़ुशी से पूछा। 

“हाँ, फोन तो लगभग रोज़ ही आता है, लेकिन कई बार वह घर वालों से हाँ-हूँ कहकर बात ख़त्म कर देती है।”

ख़ुशी की इस बात ने मेरी बेचैनी बढ़ा दी। मैंने उससे कहा कि वह तमन्ना का टूथब्रश, तौलिया और एक सूट एक बैग में रख दे, मैं उसे गैस स्टेशन से घर ले जाऊँगा। मैं उससे दिल की बात पूछने की कोशिश करता हूँ। 
ख़ुशी ने उसका ज़रूरी सामान बैग में रख दिया, उसका मोबाइल मैंने जेब में रख लिया। जाते समय मैंने ख़ुशी से कहा, “ख़ुशी, वह भी तुम्हारे बहुत क़रीब है। तुम भी उसकी ख़ामोशी का राज़ जानने की कोशिश करना। कभी-कभी मुझे डर लगता है जैसे वह अपने दिल पर बहुत बड़ा बोझ लेकर चल रही हो। अगर वह अपने दिल की बात किसी से साझा करेगी तो ही कुछ किया जा सकता है।” यह कह कर मैं बाहर आ गया। 

पाँच मिनट में मैं गैस स्टेशन पहुँच गया। कार को पार्किंग में पार्क करने के बाद, मैं गैस स्टेशन के अंदर चला गया। तमन्ना मुझे देखकर ख़ुश तो हुई, लेकिन नींद न आने के कारण वह अपने चेहरे की थकान छुपा नहीं सकी। 

“तुम यहाँ कैसे?” उसने काउंटर के पीछे से पूछा। 

मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। उसका मोबाइल फोन उसकी ओर बढ़ाया। 

“तुम्हें यह कहाँ से मिला?” मेरा जवाब सुनने से पहले ही वह बोली, “क्या तुम बेसमेंट गये थे?” 

“हाँ,” मैंने बस इतना ही कहा। 

“क्या बात है, ख़ामोश क्यों हो, ठीक तो हो न?” उसने कुछ चिंता के साथ पूछा। 

“मैं बाहर कार में तुम्हारी इंतज़ार कर रहा हूँ,” यह कह कर मैं बाहर चला आया। 

तमन्ना ने मुझे एक-दो बार आवाज़ भी दी, लेकिन मैं नहीं रुका। तभी दो ग्राहक आ गये। तमन्ना उनसे बातचीत करने लगी। 

मैं जानता था कि अभी उसे पन्द्रह-बीस मिनट और लगेंगे। हालाँकि उसने मुझसे मुस्कुराकर बात करने की कोशिश की थी, लेकिन उसकी थकान उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी। मुझे यह भी यक़ीन था कि काम में व्यस्त होने के कारण उसे खाने का समय ही नहीं मिला होगा‌, इसलिए मैंने पास के एक इंडियन रेस्तरां में फोन करके तमन्ना की पसंदीदा पनीर पराँठे का ऑर्डर कर दिया। 

पन्द्रह मिनट बाद ही तमन्ना आ गयी। कार में बैठते ही उसने पूछा, “प्लीज़, मुझे मत बताओ कि ख़ामोश क्यों हो?” 

मैं उसे यह एहसास दिलाना चाहता था कि मुझे उसका दो-दो शिफ़्टों में काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है, इसलिए मैंने जानबूझकर व्यंग्य किया, “इसके बाद तुम्हें किसी तीसरी जगह काम करने तो नहीं जाना?” उसे मेरी आवाज़ के लहजे से ही मेरी नाराज़गी का अंदाज़ा हो गया था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “प्लीज़ प्रवीण, ऐसी बातें मत करो। मैं तो तुम्हें देखकर ख़ुश हुई थी कि तुमसे बात करके मेरी सारी थकान दूर हो जाएगी, लेकिन तुम तो मेरी थकान को और भी बढ़ा रहे हो।”

“अगर सरकार मेरा हाथ छोड़ दे तो मैं गाड़ी का गियर बदल सकूँगा,” मेरी नाराज़गी अभी तक ख़त्म नहीं हुई थी। 

उसने मेरे हाथ को और कसकर पकड़ लिया और बोली, “जाओ, मैं तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ती,” इतना कहकर वह ज़ोर से हँस पड़ी। 

अचानक उसकी नज़र पिछली सीट पर रखे बैग पर गई।

”मेरा बैग? तुम्हारी गाड़ी में कैसे आया?” 

“उड़कर।”

“प्रवीण, गाड़ी रोको। मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाऊँगी। मैं स्वयं चलकर बेसमेंट तक चली जाऊँगी,” वह मेरी आवाज़ के लहजे से नाराज़़ थी। 

“पहले कुछ खा-पी कर पेट भर लो। रात के भूखे पेट में चूहे नाच रहे होंगे। क्या तुमने कभी दर्पण में अपना चेहरा देखा है?” 

“क्यों, मेरे चेहरे को क्या हुआ? यह तो अच्छा-भला है,” उसने मुँह फुलाते हुए कहा। 

“तुम्हारे गाल कितने अंदर को धँसे हुए हैं, भले ही कोई तुम्हारी सारी हड्डियाँ गिन ले। रंग तवे जैसा काला हो रहा है। कभी आईने के सामने खड़े होकर अपने को अच्छी तरह से देखना,” मेरा ग़ुस्सा अभी भी बरक़रार था। 

तमन्ना जान गई थी कि मैं उससे किस बात पर नाराज़ हूँ। उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। वह कार से बाहर देखने लगी। उसने अपने पर्स से पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया। 

थोड़ी देर बाद कार इंडियन रेस्तरां की पार्किंग में पहुँच गई। मैं बिना कुछ कहे अन्दर चला गया। पाँच मिनट बाद खाने का लिफ़ाफ़ा लेकर आया और उसे दे दिया। पराँठे की ख़ुशबू से उसका चेहरा खिल उठा। जैसे ही मैं कार में बैठा, उसने मेरा हाथ पकड़ कर चूम लिया और अपनी सीट से थोड़ा उठकर मुझसे लिपट गयी। बिना कुछ कहे उसने एक हाथ से अपना एक कान खींच लिया। उसका यह प्यार देखकर मैं भी कुछ देर के लिए अपना ग़ुस्सा भूल गया। 

रास्ते में हमारी कोई ख़ास बातचीत नहीं हुई। मैंने कार को अपने अपार्टमेंट की पार्किंग में पार्क किया। तमन्ना के पास अपना बैग और नाश्ते का लिफ़ाफ़ा था। मैं कार की पिछली सीट से उसका कपड़ों वाला बैग उठाया और हम दोनों सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंज़िल पर चले गये। अपार्टमेंट का ताला खोलने के बाद हम अंदर चले गये। लिविंग-कम-ऑफ़िस में रखे सोफ़े पर उसने हाथ वाला बैग रखा और वहीं बैठ गयी। मैंने उसके हाथ से पराँठे वाला लिफ़ाफ़ा लिया और दो कुर्सियों वाले डायनिंग टेबल पर रख दिया। वो सोफ़े पर ही लेट गई। मैंने उसकी हालत का अंदाज़ा लगाया कि वो बहुत थकी हुई है। 

मैंने रसोई से प्लेटें और कटोरियाँ उठाईं और पराँठे और दही डाल दिये। तमन्ना की आँख लग गई थी। पहले मैंने सोचा कि उसे आराम करने दूँ, लेकिन फिर यह सोचकर कि पराँठे ठंडे हो जाएँगे, मुझे उसे उठाना ही पड़ा। 

तमन्ना वॉशरूम गई और अपना हाथ-मुँह धोकर आई। जैसे ही उसने पहला निवाला मुँह में डाला, उसने मेरी तरफ़ अँगूठा उठाकर बढ़िया पराँठे लाने के लिए धन्यवाद दिया। नाश्ते के बाद मैंने उसे कपड़ों वाला बैग देकर दूसरे कमरे में जाने का इशारा किया और फ़्रिज से टाइनेल की दो गोलियाँ उसके हाथ पर रख दीं। वो मेरा इशारा समझ गयी कि मैं उसे गोलियाँ खाकर सोने को कह रहा हूँ। वह बिना कुछ कहे दूसरे कमरे में चली गई और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। 

मुझे कुछ काम करना था। मैंने अपना लैपटॉप खोला और काम करने लगा। कब दोपहर का एक बज गया, पता ही नहीं चला। मैंने दूसरे कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खोला और देखा कि तमन्ना बेफ़िक्र होकर सो रही थी। दरअसल, वह रात की ड्यूटी के कारण अनिद्रा में थी और थकी हुई भी। मैंने सोफ़े पर बैठकर मोबाइल ऑन कर लिया। क़रीब दो बजे तमन्ना की आँख खुली। वह मेरे पास आकर सोफ़े पर ही बैठ गयी। मैंने उससे पूछा कि लंच के लिए क्या ऑर्डर करूँ। 

“बाहर से ऑर्डर करने की क्या ज़रूरत है, घर में ही कुछ बना लेते हैं,” यह कह कर वह किचन में जाने लगी। 

मैंने उसे बाँह से पकड़ कर सोफ़े पर बिठाया और पूछा, “पिज़्ज़ा चलेगा?” 

उसने सिर हिलाकर सहमति व्यक्त की। मैंने पिज़्ज़ा ऑर्डर किया। 

“मैं फ़्रेश होकर आती हूँ,” उसने सोफ़े से उठते हुए कहा। 

मैंने उसे फिर से सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और कहा, “तमन्ना, अगर तुम बुरा न मानो तो क्या मैं तुमसे खुल कर बात कर सकता हूँ?” 

उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और कहा, “इसमें बुरा मनाने की क्या बात है? क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है?” 

“नहीं तमन्ना, विश्वास करने या न करने की बात नहीं। कई बार मुझे ऐसा लगता है कि तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो या मुझे बताना नहीं चाहती।”

“आज तुम यह कैसी बातें कर रहे हो, प्रवीण?” 

“तमन्ना, सच-सच बताना, क्या तुम मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रही हो? देखो, अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ है, हम दोनों को एक-दूसरे के क़रीब आए हुए। एक-दूसरे को पूरी तरह से समझने में अभी थोड़ा समय और लगेगा। यदि तुम्हारे मन में कुछ और है, तो बेहतर होगा कि हम अभी अलग हो जाएँ . . .।”

मैंने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि तमन्ना ने मेरे मुँह पर हाथ रखकर मुझे चुप करा दिया। मैंने देखा, उसकी आँखें में नमी तैरने लगी थी। 

वह भर्राई हुई आवाज़ में कहने लगी, “मैं कोई भी अग्निपरीक्षा देकर अपने आप को सच्चा साबित नहीं कर सकती, लेकिन अगर तुम मुझ पर विश्वास करो तो समझ लो कि तुम्हारे बिना अब तक मेरी ज़िन्दगी में कोई नहीं आया,” यह कहकर वह रोने लगी। 

मैंने उसे चुप कराते हुए कहा, “झल्लिये, तुम तो बात को दूसरी दिशा में ही ले गई। मेरा कहने का मतलब तो यही था कि अगर तुम किसी भी समस्या के लिए मुझसे मदद नहीं लेती या मैं अपनी कोई बात तुम से छिपाकर रखूँ, तो हमारा एक-दूसरे के क़रीब रहने का क्या फ़ायदा। हम अपनी व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्याओं को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ही साझा कर सकते हैं, जिस पर हमें भरोसा हो।”

यह सुनने के बाद भी तमन्ना रोती ही रही और कुछ नहीं बोली। 

“तुम इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि तुम किसी मुश्किल में हो। दो-दो शिफ़्टों में काम करने का मतलब है कि या तो तुम्हें पैसे कमाने का लालच है या फिर तुझे इसकी ज़रूरत है। दूसरा, तुम अपनी समस्या से बचने के लिए व्यस्त रहना चाहती हो। दोनों में से कोई भी बात हो, लेकिन तेरे लिए सही नहीं है। अगर तुम्हें पैसे का लालच है तो एक बात समझ लेना कि यह लालच जीवन-भर तेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। अगर तुम्हें पैसे की ज़रूरत है या कोई अन्य समस्या है तो जब तक तुम इसे किसी अपने से साझा नहीं करोगी तो अकेली इसका सामना कैसे करोगी। तुम्हारे चेहरे से साफ़ पता चलता है कि तुम हमेशा अस्त-व्यस्त रहती हो। न तो तुम्हें खाने की चिंता है और न ही पहनने की। ये भी कोई ज़िन्दगी है?” यह कहते हुए मैंने तमन्ना को अपने गले से लगा लिया। उसका रोना और भी मुखर हो गया। मैंने उसे चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया। मैं जानता था कि रोने के बाद अगर इंसान के अंदर का गुब्बार नमकीन पानी के ज़रिए बाहर आ जाए तो वह हल्का हो जाता है। मैं भी जब नया-नया कैनेडा आया था, तो मैं बुनियादी समस्याओं से उलझा हुआ था और अकेले रोता रहता था, क्योंकि मुझे अपने परिवार की बहुत याद आती थी। रोने के बाद मन शांत हो जाता था। 

मैंने तमन्ना की पीठ थपथपाई। वह पाँच-सात मिनट तक मेरे कंधे पर सिर रख कर रोती रही। फिर उसने ख़ुद ही मेरे कंधे से सिर उठाया और बिना कुछ कहे वॉशरूम चली गयी। जब वो दस मिनट तक बाहर नहीं आई तो मैं समझ गया कि वो नहाकर फ़्रेश होने गयी है। 

बीस मिनट बाद वह वॉशरूम से बाहर निकली। बदले हुए कपड़े, बाल सँवारे हुए और चेहरे पर मुस्कान। वह किचन में जाकर चाय बनाने लगी। दो कप चाय बनाकर ले आई। एक कप मुझे दिया और अपना कप कुर्सी के बग़ल वाली छोटी मेज़ पर रखा और वहीं बैठ गई। चाय का पहला घूँट पीते ही मैंने बातचीत के लहजे में कहा, “आज तुमने मूड में बहुत अच्छी चाय बनाई है। चाय से भी तेरी ही तरह ख़ुश्बू की लपटें आ रही हैं।” मेरी बात सुनकर वह हल्के से मुस्कुराई, लेकिन कुछ बोली नहीं। वह चाय पीते हुए कुछ सोच भी रही थी। मैं उसके चेहरे की ओर देखता रहा। 

चाय पीने के बाद तमन्ना ने अपना कप टेबल पर रखा और मेरी तरफ़ देखा। मुझे लगा जैसे वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन वह नहीं जानती थी कि कहाँ से शुरू करे। उसने एक-दो बार अपने होंठ खोले, लेकिन कहा कुछ नहीं। मैं एकटक उसे देखता रहा। कभी वो मेरी तरफ़ देखती तो कभी इधर-उधर देखने लगती। 

आख़िरकार उसने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “प्रवीण, मैंने कभी तुमसे अपने परिवार के बारे में ज़्यादा बात नहीं की। मैंने तुम्हें सिर्फ़ इतना बताया है कि मेरे माता-पिता दोनों सरकारी नौकरी में हैं। मेरा एक छोटा भाई बी. कॉम. के तीसरे साल में है।” इतना कहकर वह चुप हो गयी। मैं बस उसकी ओर देखता रहा। 

“दरअसल, मुझे कैनेडा भेजने के लिए मेरे पेरेंट्स ने अपने भविष्य निधि से पैसे निकाले, लेकिन उससे भी ख़र्च पूरा नहीं हुआ। मेरी मम्मी ने अपने बड़े भाई से पाँच लाख रुपये उधार लिये थे। यहाँ आने के बाद मुझे जल्दी काम नहीं मिला, इसके चलते मेरी फ़ीस के लिए उन्हें दो लाख रुपये और उधार लेने पड़े। अब मामी पैसे वापस पाने के लिए मेरे मामा जी से लड़ती है। मुझे वो पैसे चुकाने की चिंता सताती रहती है। दूसरे, मेरा छोटा भाई विक्की भी पेरेंट्स को परेशान करता है कि उसे भी बी. काम. के बाद कैनेडा जाना है। मम्मी-पापा उसके लिए इतने पैसे कहाँ से लाएँगे? मैं मामा जी को तीन लाख पहले ही भेज चुकी हूँ, लेकिन मामी कह रही हैं कि बाक़ी रक़म भी जल्द से जल्द लौटा दो। मैंने उन्हें देने के लिए एक लाख रुपये और जोड़े हैं, लेकिन पूरी रक़म नहीं जुटा पा रही हूँ। जब भी मम्मी का फ़ोन आता है तो वो मामी की बातें लेकर बैठ जाते हैं। कई बार तो मैं उनका फोन भी नहीं उठाती। विक्की भी पैसों का इंतज़ाम करने के लिए मुझसे फोन पर झगड़ा करता रहता है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे क्या करना चाहिए? इसीलिए जब कहीं से भी काम मिलता है तो मजबूरी में करना ही पड़ता है। जब तक मेरी पी. आर. नहीं आती और कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती, मैं विक्की को यहाँ नहीं बुला सकती। समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ? कई बार तो दिल करता है कि . . .” तमन्ना की अभी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि उसके फोन पर कोई कॉल आई। नाम देखते ही तमन्ना ने फोन एक तरफ़ रख दिया। 

मैंने पूछा, “बात क्यों नहीं करती, किसका फोन है?” 

“मम्मी का।” 

“इस समय!” मैंने आश्चर्य से कहा। 

“जब पापा और विक्की सो जाते हैं तो मम्मी दूसरे कमरे में जाकर बातें करती हैं। इस समय तो जब भी मम्मी का फोन आता है तो मामा जी के पैसों की ही बात होती है। पापा से चोरी बताते हैं। पापा, मम्मी से लड़ते हैं कि पैसों के लिए उन्हें न कहें।”

फोन बंद हो गया। तमन्ना ने राहत की साँस ली। ”प्रवीण . . .” अभी वह कुछ कहने ही वाली थी कि फोन दोबारा बज उठा। तमन्ना ने दोबारा भी फोन नहीं उठाया। मैंने कुछ देर सोच कर कहा, “मुझे फ़ोन दो।”

वह आश्चर्यचकित हो गई और बोली, “तुम मम्मी से क्या बात करोगे? मैंने अभी तक उन्हें तुम्हारे बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया है। तुम रहने दो, मेरे लिए कोई नई मुसीबत मत खड़ी करो।” यह कहते हुए उसने मोबाइल अपने हाथ में ले लिया। 

“देखो तमन्ना, एक न एक दिन तो हमें उन्हें बताना ही है, फिर क्यों न आज ही बता दें। मुझ पर विश्वास करो, मैं ठीक से बात करूँगा।” मैं सोफ़े से उठा और फोन लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए उसकी कुर्सी के पास गया। 

“प्लीज़ प्रवीण, ज़िद मत करो। जब मुझे उचित लगेगा तो मैं ख़ुद ही बात करूँगी,” तमन्ना ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। 

“नहीं तमन्ना, मुझे बात करने दो,” इतना कहकर मैंने उससे मोबाइल छीन लिया। 

“हैलो आंटी, नमस्ते! मैं प्रवीण बोल रहा हूँ।” 

“प्रवीण! कौन प्रवीण? तन्नु कहाँ है?” दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई। 

“आंटी, तमन्ना और मैं एक साथ ही काम करते हैं, हम अच्छे दोस्त भी हैं। शायद उसने आपको मेरे बारे में नहीं बताया। मैंने तो अपने माता-पिता को सब कुछ बता दिया है।”

तमन्ना, प्रवीण को फोन बंद करने का इशारा कर रही थी। 
“क्या बताया है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। तन्नु को फोन दो।”

“आंटी घबराने की ज़रूरत नहीं है। मेरे पेरेंट्स आपको फोन करके आपसे मिलने आएँगे, वो सारी बात ख़ुद ही करेंगे। सब कुछ आपकी इच्छा के अनुसार ही होगा,” मैंने कहा। 

तमन्ना ने मुझसे फोन छीनने की कोशिश की, लेकिन मैंने उसकी मम्मी से बातचीत जारी रखी, “आंटी, तमन्ना ने मुझे अभी अपने मामा जी से लिए गए कर्ज़ और कैनेडा आने की पूरी बात बताई है। क्या आपने कभी उससे वीडियो कॉल की है? उसकी शक्ल देखी है कभी? दो-दो शिफ़्टों में काम करके काली-कलूटी बन गई है, जिस तरह घरों में काम करने वाली मेड होती है। सोचो, अगर यह बिना आराम किये ऐसे ही काम करती रही तो इसका क्या हाल होगा? कैनेडा में पैसा कमाना इतना आसान नहीं है। सच तो यह है कि स्टुडेंट वीसा पर आए बच्चों को यहाँ काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। इसने पहले मेरे साथ लोन के बारे में कोई बात ही नहीं की, नहीं तो पहले ही कुछ इंतज़ाम कर लेते।” प्रवीण ने एक ही साँस में सब कुछ बोल दिया। उधर, तमन्ना की मम्मी को पता ही नहीं चल रहा था कि यह कौन बोल रहा है, क्या कह रहा है? वह बार-बार यही कह रही थी कि उसे तन्नु से बात करनी है। तन्नु की तबीयत के बारे में सुनकर वह घबरा गई थी। 

तमन्ना मेरे सामने हाथ बाँधकर खड़ी थी और मुझसे चुप रहने को कह रही थी। 

“आंटी मेरी आख़िरी बात सुनो। मामा जी के लोन की कोई चिंता मत करो। हम एक दो-दिन के अंदर उनका सारा पैसा भेज देंगे। बाक़ी विक्की को समझा दो कि जब तक तमन्ना की पी. आर. नहीं आ जाती, वह विकी का ख़र्चा नहीं कर सकती। मैं ख़ुद विक्की को समझा दूँगा। उसे बी. कॉम. के बाद कंप्यूटर ग्राफिक्स की ट्रेनिंग लेनी चाहिए। जब भी मेरी पी. आर. आ गई तो मैं अपना ग्राफिक्स का काम शुरू कर लूँगा। फिर उसे छात्र वीज़ा के बजाय वर्क परमिट पर आमंत्रित करने का प्रयास करेंगे। आंटी, ये मत सोचो कि ये कौन पागल लड़का है, जो पहली बार में ऐसी बातें कर रहा है। दरअसल मुझे तमन्ना की सेहत की ज़्यादा चिंता है। लीजिए, अब तन्नु से बात कर लो।” 

यह कहकर मैंने फोन तमन्ना को दे दिया। मेरी बातें सुनकर वो घबरा गई थी कि पता नहीं मम्मी उसे क्या कहेंगे। 

“मम्मी प्लीज़, मेरी बात सुनो . . .” इतना कहकर तमन्ना फोन लेकर दूसरे कमरे में चली गई। 

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टिप्पणियाँ

मधु शर्मा 2023/08/21 09:52 PM

इतनी बड़ी सच्चाई को इस संवेदनशील कहानी द्वारा दर्शाने के लिए लेखक व अनुवादक दोनों ही बधाई के पात्र हैं। साउथ एशिया में रहने वाले कितने ही लोग यही समझते हैं कि विदेशों में पैसे पेड़ों पर लगते हैं। पाउंड/डॉलर में कमाये गये वेतन को ढेरों रूपयों में मुद्रा-विनिमय कर उनका विस्मित होना..लेकिन विदेशों में रहने वालों की 'रोटी-कपड़ा-मकान' जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं को भी रूपयों में गिन कर उन्हें देखना होगा। कुछ हम प्रवासियों की भी भूल है कि हम जब अपने परिवार व दोस्तों से मिलने अपने देश आते हैं तो महीनों-बरसों की कड़ी मेहनत से हुई थकावट को दूर करने के लिए जाने-अनजाने में उनके सामने शॉपिंग, घूमना-फिरना, खाना-पीना इत्यादि इतना दिल खोलकर करने लगते हैं कि मानो हम लखपति न होकर करोड़पति हों।

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