स्वयं लिखी
कथा साहित्य | लघुकथा प्रो. नव संगीत सिंह15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
उस दिन काव्य-पाठ प्रतियोगिता को जज करने में मेरी भी ड्यूटी लगी थी। इस प्रतियोगिता में हमारे ही कॉलेज के छात्र-छात्राएं भाग ले रहे थे। प्रतियोगियों से कहा गया था कि कविता सुनाने से पहले उन्हें बताना होगा कि कविता उनकी अपनी है या किसी दूसरे कवि की? अगर किसी दूसरे शायर की है तो उसका नाम भी बताएँ।
एक लड़की ने अच्छी प्रस्तुति के साथ एक अच्छी कविता सुनाई और यह भी कहा कि “कविता स्वयं मेरे द्वारा लिखी गई है।” मुझे संदेह हुआ कि एक बी.ए. की लड़की इतनी अच्छी कविता नहीं लिख सकती। वह मंच से उतर कर अपनी सीट पर जाने लगी तो मैंने उसे रोका और पूछा, “बेटा, क्या यह कविता तुमने ख़ुद लिखी है?”
“हाँ सर,” उसने बेझिझक कहा। जब परिणाम घोषित हुआ तो उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
अगले दिन कक्षा में पढ़ाते समय मैंने उस लड़की से फिर पूछा, “कल जो कविता तुमने सुनाई थी, वह तुम्हारी मौलिक थी?”
उसने पूछा, “मौलिक क्या होता है सर?”
मैंने कहा, “जो स्वयं का लिखा हुआ हो।”
उसने पूरे आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “हाँ सर, मैंने ही लिखी है।” वह अपनी सीट पर गई और अपने बैग से एक नोटबुक लाई और मुझे दिखाते हुए बोली, “यह देखो सर, यह मेरी है, अपना लेखन। यह मेरी स्वयं की लिखी हुई है। यह मेरी ही लिखाई है, किसी से भी पूछ सकते हैं आप!”
मैं घबराकर कभी उसे तो कभी उसकी नोटबुक को देख रहा था।
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