अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मुझे फोन कर देना

प्रवासी पंजाबी कहानी


मूल-लेखक: रविंदर सिंह सोढी 
अनुवादक: प्रो. नव संगीत सिंह 

 

 शिफाली ने मोबाइल का अलार्म बंद कर दिया। शनिवार का का दिन था, इसीलिए वह देरी से उठी। 

कोरोना के कारण जब से उसने घर से ऑफ़िस का काम करना शुरू किया था, तब से वह सुबह देर से ही उठती थी। पहले तो जल्दी उठकर तैयार होना, नाश्ता बनाना, दोपहर का खाना पैक करना, ऑफ़िस पहुँचने के लिए कभी बस तो कभी ट्रेन की आपाधापी पड़ी रहती थी। अब वह सुबह उठकर एक कप चाय पीते हुए कुछ देर अपना मोबाइल फोन चेक करती, फिर ज़रूरी काम निपटा कर अपना लैपटॉप ऑन करती और ऑफ़िस के काम में जुट जाती। घंटा-डेढ़ घंटे तक काम करने के बाद वह नहाती और नाश्ता करती और फिर से अपने काम में व्यस्त हो जाती। दोपहर में लंच के लिए उसके पास सिर्फ़ आधा घंटा ही होता था। वह जल्द ही इस रुटीन से भी ऊब गई। ऑफ़िस जाते समय तो समय पर तैयार होना, बस-ट्रेन के सफ़र में कुछ समय गुज़र जाता और कुछ लोगों से मेल-जोल हो जाता, लेकिन घर से काम करते हुए उसे घर की चारदीवारी में क़ैद होने से घबराहट होने लगी। हाँ, शाम को घर के पास वाले पार्क में टहलने ज़रूर जाती थी। दो-चार जान-पहचान की लेडीज़ से मिलते हुए कुछ समय बीत जाता। लेकिन घर आकर उसे बेचैनी-सी होती। आख़िर टी.वी. या मोबाइल के साथ कितना समय बिताया जा सकता है! कभी-कभी वह सोचती कि अकेले व्यक्ति की भी कोई ज़िंदगी है? 

वह बिस्तर से उठकर वॉशरूम गई और फिर किचन में जाकर चाय बनाने लगी। चाय का कप बिस्तर की बग़ल वाली टेबल पर रखकर मोबाइल से व्हाट्सएप मैसेज और फिर ईमेल चेक किया। केवल एक ही ईमेल था, उसकी कंपनी के बाॅस का। केवल एक ही पंक्ति लिखी थी, “सेंड द प्रॉजेक्ट रिपोर्ट इमीजीएटली।” इसे पढ़ते ही उसके मुँह से निकला, “बास्टर्ड!”

उसने जल्दी से अपनी चाय ख़त्म की और अपना लैपटॉप ऑन किया। यह तो अच्छा हुआ कि उसने कल रात ही पूरी रिपोर्ट टाइप कर ली थी और रिपोर्ट के साथ संलग्न के रूप में भेजने के लिए फोटो को एक अलग फ़ोल्डर में डाल दिया था। अब तो उसे बस अपनी टिप्पणी ही टाइप करनी थी। 

इतने में उसके मोबाइल पर एक कॉल आई। उसने झट से मोबाइल देखा, किसी अनजान नंबर से कॉल थी। शिफाली ने झुँझलाकर फोन काट दिया और अपना काम करने लगी। पाँच मिनट बाद उसी नंबर से फिर कॉल आई। शिफाली ने ग़ुस्से में मोबाइल ही बंद कर दिया‌। लगभग चालीस मिनट में उसने अपनी टिप्पणी टाइप की और राहत की साँस लेते हुए रिपोर्ट ईमेल कर दी। इस समय तक उसे भूख भी लग चुकी थी। वह वॉशरूम में नहाने चली गयी और उसके बाद किचन में। उसने फ़्रिज खोलकर देखा कि शायद वहाँ कुछ पड़ा हो, लेकिन उसे निराश होना पड़ा। उसने फ़्रीज़र से चिकन नगेट्स निकाले और उन्हें माइक्रोवेव में गर्म होने के लिए रख दिया और फिर कॉफ़ी बनाने लगी। 

नाश्ता करने के बाद उसने टी.वी. ऑन किया, लेकिन तभी उसे याद आया कि किसी अनजान नंबर से काॅल आई थी। उसने मोबाइल ऑन किया तो पता चला कि उसी नंबर से तीन और कॉल आई थीं। वह सोचने लगी कि यह कौन हो सकता है? न चाहते हुए भी उसने वह नंबर मिलाया। दूसरी ओर से एक स्त्री-स्वर आया, “आपको डिस्टर्ब करने के लिए क्षमा चाहती हूँ।”

“पहले आपकी कॉल अटेंड नहीं कर पाने के लिए मुझे माफ़ी माँगनी चाहिए। दरअसल, मुझे कंपनी के बाॅस को जल्दी से एक रिपोर्ट भेजनी थी, वही तैयार कर रही थी। मैं अभी ख़ाली हुई हूँ। अब बताइए?” 

“मैं शैली बोल रही हूँ। मैं मेलबर्न में रहती हूँ, आज मैं आपके शहर में हूँ। आपसे मिलना चाहती हूँ।”

शिफाली को बहुत आश्चर्य हुआ कि वह शैली नाम की किसी महिला को नहीं जानती थी। “क्या आप मुझसे मिलने के लिए ही मेलबर्न से सिडनी आईं हैं?” 

“पहली बात तो आप मुझे मेरे नाम से बुला सकती हैं। दूसरी बात, सिडनी किसी दूसरे काम से आई थी, सोचा आपसे भी मिल लूँ,” दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई। 

“आपको मेरा मोबाइल नंबर कहाँ से मिला और आपको मुझसे क्या काम है?” शिफाली ने पूछा। 

“यदि मैं आपसे मिलकर आपके प्रश्नों का उत्तर दूँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं न! मैं पंद्रह-बीस मिनट में आपके पास पहुँच जाऊँगी। आपका एड्रेस मेरे पास है।”

शिफाली ने अनिच्छा से सहमति दे दी। वह सोचने लगी कि वह अनजान लड़की कौन होगी और वह मुझसे क्यों मिलना चाहती है? लेकिन उसने सोचा कि शैली के आने से पहले वह अपना बेडरूम और लिविंग रूम ठीक-ठाक कर ले। उसने जल्दी से अपना बिस्तर ठीक किया और लिविंग रूम को भी साफ़-सुथरा कर लिया। किचन तो उसने रात को ही सेट की थी। वह अभी इन्हीं कार्यों से निवृत्त हुई थी कि डोरबेल हुई। उसने जाकर दरवाज़ा खोला। बाहर एक 28-30 साल की ख़ूबसूरत युवती खड़ी थी। जींस और गहरे रंग के टॉप में वह और भी क्यूट लग रही थी। इससे पहले कि शिफाली कुछ कहती, वह ख़ुद ही बोल पड़ी, “शैली।” यह कहते हुए वह शिफाली से बहुत अपनत्व से गले मिली जैसे वे दोनों एक-दूसरे को बहुत समय से जानती हों। 

दरवाज़े के अंदर आकर शैली ने अपने स्पोर्ट्स शूज़ उतारे और शिफाली के पीछे-पीछे लिविंग रूम में आकर बैठ गई। उसने ख़ुद ही बोलना शुरू किया, “सॉरी, अचानक आपके पास आकर आपका वीकएंड बर्बाद कर दिया।”

“कोई बात नहीं, वीकएंड मेरे लिए बोरिंग ही होता है। आपके आने से समय अच्छा गुज़रेगा, लेकिन . . .”

“बाक़ी बातें बाद में, पहले एक गिलास पानी,” शैली ने टोकते हुए कहा। 

शिफाली बिना कुछ कहे किचन में गई और दो गिलास जूस ले आई। 

जूस पीते समय दोनों कुछ नहीं बोलीं, लेकिन शिफाली बार-बार प्रश्नवाचक नज़रों से शैली को देख रही थी। यह बात शैली को भी उसके चेहरे के हावभाव से समझ आ गई। उसने जूस पिया और ख़ाली गिलास मेज़ पर रख दिया। अब वह शिफाली की तरफ़ देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी। शिफाली ने भी चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने का नाटक किया। 

“मैं तुम्हें अब और सस्पेंस में नहीं रखूँगी,” शैली ने कहा। 

“अगर तुम भी मुझे नाम से बुलाओगी तो अच्छा लगेगा।” 

“सो कांयड ऑफ़ यू,” इतना कह कर शैली कुछ देर के लिए चुप हो गई और फिर बोली, “मुझे तुम्हारा नंबर और एड्रेस अर्जुन से मिला।”

“क्या? यू मीन अर्जुन सूद! उसने तुम्हें मेरे पास क्यों भेजा है?” शिफाली ने एक साथ कई सवाल पूछे। दरअसल, अर्जुन का नाम सुनते ही उनके माथे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं। 

शिफाली का व्यवहार देखकर शैली उसके पास गई और उसका हाथ दबाकर कहा, “रिलेक्स शिफाली, रिलेक्स! मुझे ग़लत मत समझो। अर्जुन ने मुझे तुम्हारे पास नहीं भेजा। बिलीव मी।”

“तो फिर तुम्हें मेरे पास किसने भेजा है?” शिफाली अभी भी ग़ुस्से में थी। 

“मुझे पता है कि तुम्हारा और अर्जुन का तलाक़ का केस चल रहा है,” इतना कहकर वह चुप हो गई और शिफाली के चेहरे की ओर देखने लगी। वह अभी तक नॉर्मल नहीं हुई थी। “शिफाली, मेरी उससे शादी की बातचीत चल रही है।” 

“क्या?” शिफाली तुरंत ऊँची आवाज़ में बोली, लेकिन जल्द ही उसे अपने बोलने के तरीक़े पर पछतावा हुआ और वह चुप हो गई। थोड़ी देर बाद वह नॉर्मल हुई और बोली, “अगर तुम्हारी उससे बातचीत चल रही है तो मेरे पास किसलिए आई हो?” 

“मैं तुम्हें सब कुछ विस्तार से बताती हूँ। मेरे पेरेंट्स ने एक मैरिज वेबसाइट पर मेरा बायोडाटा डाला था। उस मामले में अर्जुन का रिस्पॉन्स मिला। जब मैं . . .”

“क्या तुम भी डायवोर्सी हो?” शिफाली ने उसकी बात काटते हुए पूछा। 

“नहीं। उसने फोन करके अपने बारे में सब कुछ बताया था और यह भी बताया कि उसका अपनी पहली पत्नी से तलाक़ का केस चल रहा है और तुम दोनों आऊट ऑफ़ कोर्ट भी सेटलमेंट करने की कोशिश कर रहे हो।”

“हम्म!”

“मुझे अर्जुन से ही तुम्हारा मोबाइल नंबर और एड्रेस मिला। मैं उसे दो बार मिली भी हूँ। मैंने उससे कह दिया था कि मैं बात को आगे बढ़ाने से पहले तुम्हारी पहली वाइफ़ से बात करना चाहती हूँ। वास्तव में शिफाली, मुझे और मेरे पेरेंट्स को उसकी बाक़ी सभी बातें ठीक लगीं। आजकल डायवोर्स वाली बात ज़्यादा मायने नहीं रखती। लेकिन मैं वास्तव में तुमसे मिलकर इसके बारे में कुछ जानकारी लेकर ही कोई निर्णय लेना चाहती हूँ।”

“देखो शैली, हम एक दूसरे को नहीं जानते। मेरा अर्जुन के साथ तलाक़ का केस चल रहा है। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें उसके बारे में सही जानकारी दूँगी?” 

“सबसे पहले, यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम किसी जानने वाले को तो हमेशा ग़लत राय दे सकते हैं, लेकिन किसी अजनबी को नहीं। दूसरी बात, अर्जुन ने मुझे तुम्हारे बारे में जो बताया है, मैं उससे आश्वस्त हूँ कि तुम मेरा सही मार्गदर्शन करोगी,” शैली ने शिफाली के दोनों हाथ पकड़कर कहा। 

“किसी अनजान व्यक्ति पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए।”

“एक बात बताओ शिफाली, क्या तुम्हारी कोई छोटी बहन या भाई हैं?” 

“नहीं, मैं अपने माता-पिता की इकलौती बेटी हूँ,” शिफाली ने आह भरते हुए कहा। 

“ओह! यदि तुम्हारी कोई छोटी बहन होती और वह अपने जीवन के किसी महत्त्वपूर्ण निर्णय पर तुमसे सलाह माँगती, तो क्या तुम उसे ग़लत राय देती?” शैली ने बहुत अपनत्व से कहा। 

शैली के इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था। वह शैली का चेहरा देखती रही। वह किचन में गई और एक गिलास पानी पिया और फिर चाय बनाने लगी। दरअसल वह कुछ समय के लिए शैली से दूर रहना चाहती थी। वह सोच रही थी कि अर्जुन ने पता नहीं शैली को उसके बारे में क्या कहा होगा कि शैली उस पर इतना भरोसा कर रही है। शैली भी उसके पास किचन में ही आ गयी। 

“कितना मीठा लोगी?” 

“फीकी,” इतना कहकर शैली ने दो मग उठाये और शिफाली के पास रख दिये। 

दोनों अपने-अपने चाय के मग लेकर लिविंग रूम में सोफ़े पर बैठ गईं और चाय पीने लगीं। चाय पीते समय शिफाली ने शैली से नज़रें नहीं मिलायीं। दरअसल, उसके अंदर एक खलबली सी मची हुई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शैली को अर्जुन के बारे में क्या बताए और क्या नहीं? उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ था-अच्छा भी, बुरा भी। एक बार तो उसने शैली को अर्जुन से आगे बात बढ़ाने से रोकने का फ़ैसला भी कर लिया। लेकिन दूसरे ही पल वह सोचने लगी कि अगर शैली अर्जुन के साथ ज़िन्दगी गुज़ारना चाहती है तो उसे इससे क्या आपत्ति हो सकती है। अगले दो-चार महीनों में वे क़ानूनी तौर पर अलग हो ही जाएँगे। एक बार शिफाली ने सोचा कि अर्जुन को नया जीवनसाथी ढूँढ़ने की इतनी जल्दी क्यों है? उसने तो अभी तक इसके बारे में सोचा भी नहीं है, जबकि उसकी माँ अक़्सर उसे इस बारे में कहती रहती है। उसकी कुछ सहेलियों ने भी उसे कई बार पुरानी ज़िन्दगी को भूलकर नई ज़िन्दगी शुरू करने के लिए कहा है, लेकिन वह अभी तक इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं ले पाई। कभी-कभी वह सोचती है कि ग़लती कहाँ हुई? जब उसने और अर्जुन ने शादी के बाद अपनी नई ज़िन्दगी शुरू की, तो उसने नहीं सोचा था कि अचानक इतना ख़तरनाक मोड़ भी आ सकता है! उसके चेहरे के बदलते हाव-भाव से उसके अंदर की उथल-पुथल का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता था। शैली उसके चेहरे को एकटक देखे जा रही थी, लेकिन शिफाली इस बात से बेख़बर अपने ख़्यालों के ज्वार-भाटे में डूबती जा रही थी। वह शायद भूल ही गयी थी कि उसके सामने कोई बैठा है। आज शैली ने रुके हुए पानी में पत्थर फेंक कर नई लहरें पैदा कर दी थीं। एक बार तो उसके मन में आया कि वह शैली को कह दे कि वह उसकी कोई मदद नहीं कर सकती। 

जब काफ़ी देर तक शिफाली कुछ नहीं बोली तो शैली ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “किस प्रवाह में बह गई तुम?” 

शैली की आवाज़ सुनकर शिफाली तुरंत अपने ख़्यालों से बाहर आई। 

“मैं कहीं तुम्हारे पुराने घाव तो नहीं कुरेद रही?” शैली ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। 

“शैली, सच तो यह है कि शरीर के घाव तो समय के साथ ठीक हो जाते हैं, लेकिन दिल के घाव रिसते ही रहते हैं। ख़ैर, छोड़ो ये सब बातें। हाँ, तुम्हें क्या पूछना है?” 

उसका संक्षिप्त उत्तर सुनकर शैली ख़ुश हो गई। उसने शिफाली का हाथ पकड़ते हुए कहा, “यू आर ग्रेट शिफाली, सिंपली ग्रेट। आई वाज़ कांफ़िडेंट दैट यू विल हैल्प मी।”

 “ज़्यादा ख़ुश मत हो, तुम्हें मेरी फ़ीस देनी होगी,” शिफाली ने हँसते हुए कहा। 

“एडवांस या आफ़्टर?” 

इस पर शिफाली ने कोई जवाब नहीं दिया, बस हल्के से मुस्कुरा दी। 

शैली भी सचेत होकर बैठ गई, जैसे कुछ पूछने से पहले ख़ुद को तैयार कर रही हो। 

“क्या वह आदमी है?” शैली ने कुछ झिझकते हुए कहा। 

“क्या?” शिफाली ने आश्चर्य से पूछा। 

“क्या वह आदमी है?” शैली ने अपनी बात दोहराई, उसके चेहरे से हल्की सी शरारत टपक रही थी। 

ऐसी मुस्कुराहट से शिफाली को उसका मतलब समझ आ गया। “यू नाॅटी गर्ल। तुम यह क्यों पूछ रही हो?” उसने शैली की पीठ प्यार से थपथपाई। 

“दरअसल हमारे देश में लड़कियाँ अक़्सर तलाक़ के वक़्त अपने पति पर यह आरोप लगाती हैं।”

“डोंट वरी! ही विल कीप यू हैपी!” इतना कहकर शिफाली ज़ोर से हँस पड़ी और इस हँसी में शैली ने भी उसका पूरा साथ दिया। 

“देखो शिफाली, यह शादी का एक अहम पहलू है। लड़कियाँ इस बारे में आपस में बात साझी कर सकती हैं। अब मैं कुछ और बातें जानना चाहती हूँ।”

“तुम जो भी पूछोगी, मैं तुम्हें सब कुछ सही-सही बताने की कोशिश करूँगी। यू आर ऐन इंट्रस्टिंग गर्ल।”

“वो बहुत कंजूस तो नहीं है न?” 

“हम्म, कंजूस तो नहीं कह सकते, लेकिन ज़्यादा ख़र्चीला भी नहीं है। उसे फ़ुज़ूलख़र्ची पसंद नहीं है।”

“बहुत संदिग्ध तो नहीं?” 

“देखो, यह शक का कीड़ा तो हर स्त्री-पुरुष के मन में घूमता ही रहता है, ख़ासकर उनके जो हमारे देश में पैदा हुए हैं।” 

“ड्रिंक कितनी करता है? क्या वह कोई अन्य ड्रग तो नहीं लेता?” 

“ड्रिंक तो करता है, लेकिन लिमिट में। हाँ, ड्रग्ज़ से बचा हुआ है।” 

“उसके माता-पिता की ज़्यादा इंटरफ़ियरेंस तो नहीं है? यदि है, तो क्या ऐसा तो नहीं कि वह हमेशा उनके पीछे लगा रहता हो?” 

“हमारे देश के लड़के-लड़कियों को कुछ न कुछ यह बीमारी होती है। लड़कियों की माँएँ या बड़ी बहनें और
इसी तरह लड़कों की माँएँ और बहनें भी इस बीमारी की शिकार हैं। अगर लड़के अपने माता-पिता की बातों में आते हैं तो लड़कियाँ भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। दरअसल, हमारे माता-पिता यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि शादी के बाद लड़के-लड़कियों को अपनी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से जीनी चाहिए। लगभग हर लड़के की माँ यही चाहती है कि उसका लड़का अपनी पत्नी का अनुयायी बनकर अपने माता-पिता को इग्नोर न करे। लेकिन अपनी बेटी के लिए उनकी सोच इसके विपरीत होती है कि ससुराल में उसका पूरा कंट्रोल हो। इन इंडियन फ़ैमिलीज़, यू कांट अवायड सच थिंग्स।”

 “एंड वट अबाऊट अर्जुन?” 

“ही इज़ आलसो ऐन ओबिडियंट सन, या कहें कि माँ का श्रवण-पुत्र है।”

“हम्म।” इतना कहकर शैली चुप हो गई और थोड़ी देर बाद बोली, “क्या वह यह तो नहीं चाहता कि पत्नी की कमाई भी उसके कंट्रोल में ही हो?” 

“ही इज़ लाइक दैट ओनली, लेकिन मैंने उससे शुरू में ही बता दिया था कि मेरी सैलरी मेरे पास ही रहेगी। हम दोनों को घर के लिए ख़र्चा करना होगा और बचत भी हमारी साझी होगी।”

“एंड व्हाट वाज़ हिज़ रिएक्शन टु दैट?” शैली ने पूछा। 

“पहले तो वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे वह लाइन पे आ गया।”

“उसने कभी तुम पर हाथ उठाने की कोशिश तो नहीं की?” शैली ने तनिक झिझकते हुए पूछा। 

“शैली, क्या तुम कोई साइकालोजिस्ट तो नहीं हो?” 

“यदि तुम मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती, तो तुम्हारी मर्ज़ी,” शैली ने उसके प्रश्न को अनसुना करते हुए कहा। 

“नहीं शैली, ऐसी तो कोई बात नहीं। मैंने पहले भी तुम्हारी हर बात का सही उत्तर दिया है। मुझे तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर देने में भी कोई आपत्ति नहीं है। मैंने तो यूँ ही बात की थी,” शिफाली ने सफ़ाई देते हुए कहा। 

इस पर शैली कुछ नहीं बोली। 

“एक बार बातों-बातों में हमारे बीच बहस हो गई। इस बहस से वह कुछ हद तक क्रोधित हो गया। वह ग़ुस्से में मेरी ओर बढ़ा। मैंने उसकी चाल पहचान ली। मैंने सोफ़े से उठते हुए उसे ग़ुस्से में कहा, ‘अर्जुन, मेरी ओर कुछ सोच-समझकर कर आगे बढ़ना। मैं तुम्हारी ऐसी कोई भी हरकत बर्दाश्त नहीं करूँगी।’ 

“वह मेरा ग़ुस्सा देखकर कुछ सँभला, लेकिन फिर भी उसने मुझे धक्का देकर सोफ़े पर गिरा दिया और ग़ुस्से में घर से बाहर चला गया।”

“क्या उसके बाद फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई?” 

“नहीं।”

“तुम्हारी इन बातों से मुझे अंदाज़ा हो गया है कि तुम और अर्जुन दोनों नॉर्मल कपल हो। तुम अर्जुन के साथ अपनी ज़िन्दगी अच्छे से जी रही थी और अर्जुन भी एक सामान्य हिंदुस्तानी हस्बैंड की तुलना में अपनी वाइफ़ के प्रति ज़्यादा आज्ञाकारी था, लेकिन फिर अचानक ऐसी कौन-सी बात तुम दोनों के बीच हुई कि दोनों ने अलग होने का फ़ैसला कर लिया?” यह कहते हुए उसने शिफाली के चेहरे की ओर देखा कि कहीं उसके चेहरे पर कोई विशेष प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है। 

शिफाली को शायद पहले से ही ऐसे सवाल की उम्मीद थी। उसे शैली की यह बात सुनकर ज़्यादा हैरानी नहीं हुई, लेकिन उसने तुरंत इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह कुछ देर तक ख़ामोश रही, मानो सोच रही हो कि वह अपनी बात कहाँ से शुरू करे। शैली भी उसके चेहरे के हावभाव पढ़ रही थी, इसलिए कुछ नहीं बोली। 

“हमारी शादी इंडिया में ही हुई थी, दोनों के पेरेंट्स की सहमति से। हम शादी से पहले एक-दूसरे को जानते थे। शादी से एक महीने बाद हम ऑस्ट्रेलिया लौट आए और कुछ हफ़्तों के बाद हम अपने-अपने काम पर जाने लगे। हमारी मैरिज लाइफ़ अच्छे से शुरू हुई। मुझे लगता कि अर्जुन बहुत कोआपरेटिव है, बहुत ज़्यादा रोक-टोक नहीं करता। वह घर के सभी कामों में भी हाथ बँटाता। वीक एंड पर हम घूमने चले जाते और बाहर खाना खाते। छह महीने बाद ही उसने अपने पेरेंट्स को ऑस्ट्रेलिया बुलाने की रट लगानी शुरू कर दी। मैं उनके आने के ख़िलाफ़ नहीं थी, लेकिन यह ज़रूर चाहती थी कि पाँच-सात महीने और गुज़र जाएँ, हम एक-दूसरे को पूरी तरह जान लें। मैं समझती हूँ कि इस मामले में उसने अपनी ज़िद मनवायी या यूँ कहें कि उसके पेरेंट्स ने उस पर दबाव डाला। क़रीब दो महीनों में उन्हें वीज़ा मिल गया और वे हमारे पास पहुँच भी गए।”

इतना कह कर शिफाली चुप हो गयी। वह रसोई में गई और दो गिलास पानी ले आई। 

दो-चार घूँट पानी पीने के बाद शिफाली फिर कहने लगी, “कुछ देर तक तो सब ठीक-ठाक रहा। उनके आने से मुझे भी काफ़ी आराम मिला। उन्होंने रसोई का सारा काम सँभाल लिया। उनके आने के बाद हम भी अपने फ़्रेंड-सर्किल में आने-जाने लगे। हम भी कुछ परिवारों को महीने में एक या दो बार अपने घर पर आमंत्रित करने लगे। दरअसल यहीं गड़बड़ हो गई। मेरी सास को बातें करने का कुछ ज़्यादा ही चस्का था। वह किसी को तो बोलने ही नहीं देती थीं। एक दिन मैंने अर्जुन से कहा कि वह अपनी माँ को रोके ताकि वह दूसरों की बात भी सुने। अर्जुन ने इस बात पर बुरा मनाया। उसने यह बात अपनी माँ को भी बता दी। यहीं से हमारी उलझन शुरू हुई।”

यह कहते हुए शिफाली ने पानी पिया और फिर अपनी बात शुरू की, “मेरी सास ने धीरे-धीरे रसोई का काम मुझ पर डाल दिया। मुझे काम से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन पहले अर्जुन काम में मेरी मदद करता था, अब वह ख़ाली बैठा रहता या फिर अपने पेरेंट्स से बातचीत करता रहता। एक दिन मैंने अर्जुन से इस बारे में बात भी की। वह मेरी बात सुनते ही ऊँची आवाज़ में बोलने लगा। जब उसकी माँ हमारे झगड़े में दख़ल देने लगी तो मैंने उन्हें बोला कि वे हमारे हस्बैंड-वाइफ़ की बात में दख़ल न दें। अर्जुन को अपनी माँ को रोकना चाहिए था, लेकिन उल्टे मुझे ही आँखें दिखाना शुरू कर दिया कि उसकी माँ से इस टोन में बात ना करूँ। इतनी छोटी सी बात से बात बढ़ गई। इसके बाद अर्जुन और उसकी माँ बहाने ढूँढ़ने लगते मेरे साथ लड़ने के और हमारे घर में कलह शुरू हो गई।”

इतना कह कर शिफाली चुप हो गयी। बोलते-बोलते उसकी साँसें फूल रही थीं और वह अपने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ भी भींच रही थी। उसकी आँखों में ग़ुस्सा था और आँखों के कोने गीले थे। उसके चेहरे के हाव-भाव से शैली को ऐसा लगा जैसे पुरानी बातें याद करते-करते उसके मन में कुछ उथल-पुथल हो रही हो। शायद उसे अगली बात शुरू करने की हिम्मत नहीं हो रही थी और उसका मन भी भरा हुआ था। 

शैली ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, “रिलेक्स शिफाली, जस्ट रिलेक्स! मुझे खेद है कि मैंने तुम्हारे पुराने घाव खोल दिए, लेकिन मुझे यक़ीन है कि मेरे साथ अपनी पुरानी ज़िन्दगी साझा करके तुम थोड़ा हल्का हो जाओगी।”

शैली की यह बात सुनते ही शिफाली सिसकने लगी। उसकी आँखों से अपने-आप आँसू निकलने लगे। क्रोध से उसके होंठ फड़फड़ाये, परन्तु आवाज़ नहीं निकली। शैली ने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। शैली के ऐसे अपनत्व ने शिफाली का रोना और तेज़ कर दिया और उसका रोना सिसकियों में बदल गया। शैली अपने एक हाथ से उसकी पीठ थपथपाने लगी, लेकिन उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की। वह जानती थी कि खुलकर रोने के बाद उसका मन हल्का हो जाएगा। वह शिफाली की पीठ थपथपाती रही। मुँह से कुछ नहीं बोली। वह जानती थी कि ऐसी हालत में शिफाली उसकी कोई बात नहीं सुनेगी, अगर सुनेगी भी तो उसे समझ नहीं आएगी और उस पर कोई असर नहीं होगा, इसलिए अच्छा यही है कि वह आँसुओं के ज़रिए अपने मन का बोझ हल्का कर ले। 

शैली ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। शिफाली को ऐसा लगा मानो वह अपनी माँ की गोद में लेटी हो। अपनी माँ को याद करके वह और ज़ोर से रोने लगी। 

कुछ देर बाद शिफाली ने शैली की गोद से सिर उठाया और बैठने लगी। शैली ने फिर उसका सिर अपनी गोद में रखते हुए कहा, “दिल का बोझ कुछ और हल्का कर लो।”
 कुछ देर बाद शैली ने मेज़ पर रखा पानी का गिलास उठाया और उसके मुँह को लगा दिया। शिफाली ने दो घूँट पानी पीने के बाद गिलास को मेज़ पर रखा और बैठते हुए शैली का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “सॉरी शैली, मैं ख़ुद पर कंट्रोल नहीं रख सकी, उल्टा तुम्हारा मूड भी ख़राब कर दिया।”

“मेरी चिंता मत करो, तुम रिलेक्स हो जाओ।”

इसके बाद कुछ देर तक दोनों में से किसी ने बात नहीं की। 

शिफाली ने ही फिर बात शुरू करते हुए बताया, “एक बार अर्जुन ने मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की थी तो मैंने उसे चेतावनी देते हुए धमकी दी कि मैं पुलिस बुला लूँगी।”

 “दैन व्हाट वाज़ हिज़ रिएक्शन?” 

“वह रुक तो गया लेकिन उसके बाद वह और अधिक खीझा-सा रहने लगा। एक दिन तीखी आवाज़ में मैंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस घर में या मैं रहूँगी या तुम्हारे पेरेंट्स। उसके माता-पिता का वीसा भी समाप्त होने वाला था, इसलिए उनको वापस जाना पड़ा। जब हमारे फ़ैमिली-फ़्रेंड्स को हमारे झगड़े के बारे में पता चला, तो उन्होंने हम दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था।”

“क्या तुम्हें कभी यह तो नहीं लगा कि उसके जीवन में कोई दूसरी लेडी आ गई हो?” 

“मैंने इस एंगल से कभी नहीं सोचा। मैं पूरा दिन ख़ुद से खीझती रहती थी। ऑफ़िस में भी काम करने को मन न करता। कभी-कभी मैं यह भी सोचती कि इस तरह जीने से तो अच्छा है कि मैं मर ही जाऊँ,” इतना कह कर वह फिर रोने लगी। 

“क्या तुम किसी मैरिज काउंस्लर के पास नहीं गए?” 

“हमारे एक फ़ैमिली-फ़्रेंड ने हम दोनों को इसके बारे में बताया भी, लेकिन अर्जुन सहमत नहीं हुआ।”

“तुम्हारी सिडनी शिफ़्ट करने की योजना कैसे बनी?” 

“घर के उस माहौल से मेरा दिल घबराने लगा। मैं डिप्रेशन का शिकार हो गयी। फ़ैमिली डॉक्टर से सलाह ली, तो उन्होंने कहा कि अगर तुम कुछ समय के लिए इस माहौल से दूर चली जाओ तो यह आप दोनों के लिए अच्छा होगा। बाय चांस, हमारी कंपनी ने मुझे सिडनी शिफ़्ट कर दिया।”

“क्या अर्जुन ने तुम्हें रोका नहीं?” 

“नहीं, उसने तो बस यही कहा कि जहाँ जाना चाहती हो, चली जाओ।” 

“तुमने घर छोड़ते समय क्या कुछ साथ लिया?” 

“सिर्फ अपनी पर्सनल चीज़ें।”

“तुम्हारे आने के बाद क्या उसका कोई फोन आया?” 

“एक बार मैंने उसे उसके जन्मदिन पर फोन किया था और एक बार उसने मुझे मेरे जन्मदिन पर फोन किया था।”

“हम्म, कोई और ख़ास बात?” 

“क़रीब तीन महीने पहले उसने तलाक़ के लिए अर्ज़ी दायर की थी।”

“क्या तूने उससे इसके बारे में बात की?” शैली ने पूछा। 

“हाँ। मैंने उसे फोन किया और पूछा कि क्या वह जल्दबाज़ी तो नहीं कर रहा?” 

“तो उसने क्या उत्तर दिया?” 

“उसने कहा कि जब हमारा आपस में कोई रिश्ता ही नहीं रहा, तो एक-दूसरे से बँधे रहने का क्या फ़ायदा!”

“क्या तुम्हें लेटेस्ट डिवेलपमेंट का पता है?” 

यह सुनकर शिफाली ने आश्चर्य से शैली की ओर देखा और झट से पूछा, “क्या?” 

“कोरोना के कारण उसके पेरेंट्स की डेथ हो गई है। पहले उसकी मदर कोरोना का शिकार हुई और उसके एक महीने बाद उसके फ़ादर। फ़्लाइटस बंद होने के कारण वह जा भी नहीं सका।”

“ओह, सॉरी टु नो अबाउट दिस। अगर मुझे पहले पता होता तो मैंने उसे फोन कर दिया होता।”

“अब जब तुम्हारा उससे कोई लेना-देना ही नहीं है और उसके पेरेंट्स के कारण ही तुम दोनों की अनबन हुई है तो तुम्हें उसके प्रति सहानुभूति क्यों है?” 

शिफाली ने उसे ग़ुस्से से देखा और कहा, “शैली, हमें कभी किसी की मौत पर ख़ुश नहीं होना चाहिए। अगर मेरे नहीं, तो वो उसके माता-पिता तो थे ही। कुछ देर तो मैंने उनके साथ भी अच्छा समय बिताया था।”

यह सुनकर शैली चुप हो गई। थोड़ी देर बाद बोली, “शिफाली, नाराज़ मत होना, एक बात कहूँ?” 

“क्या?” 

“पहले मैंने तुमसे झूठ कहा था कि मेरी अर्जुन से बात चल रही है। ये झूठ बोलना मेरी मजबूरी थी। वास्तविकता यह है कि मैं एक मैरिज काउंस्लर हूँ।”

यह सुनकर शिफाली के चेहरे पर क्रोध और आश्चर्य के मिले-जुले प्रभाव दिखाई दिये। वह कुछ कहने ही वाली थी कि शैली ने उसे हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा और अपनी बात ख़त्म करते हुए बोली, “पहले मेरी पूरी बात सुनो। कुछ दिन पहले तुम्हारा कोई फ़ैमिली फ़्रेंड अर्जुन को मेरे पास लाया था। अर्जुन ने मुझे पूरी कहानी बताई। मेरे अर्जुन के साथ दो सेशन हो चुके हैं। तुम्हारी बात सुनने तक मैं कुछ नहीं कर सकती थी। संयोग से मेरा सिडनी आने का प्रोग्राम बन गया। मैं तुमसे बात करना चाहती थी। मुझे इस बात की तसल्ली है कि अर्जुन और तुम दोनों ने लगभग एक जैसी कहानी सुनाई है। जहाँ तक एक मैरिज काउंस्लर के रूप में मेरे अनुभव का सवाल है, तुम्हारा केस कोई बहुत जटिल नहीं है। मैं नेक्स्ट वीक फिर से सिडनी आ रही हूँ, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ एक और सेशन कर सकती हूँ। मैंने तुम्हारी सारी बातें तो सुन ही ली हैं। तुम्हें कुछ काउंसलिंग की आवश्यकता है। उसके बाद एक या दो सेशन तुम दोनों के एकसाथ होंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम दोनों ऐज़ हस्बैंड-वाइफ़ नॉर्मल लाइफ़ बिता सकते हो।” यह कहते हुए उसने अपने पर्स से अपना विज़िटिंग कार्ड निकाला और शिफाली को देते हुए कहा, “अगर तुम बात आगे बढ़ाना चाहती हो तो एक-दो दिन में मुझे फोन करना।” 
यह कहते हुए उसने शिफाली को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, “मेरी फ़्लाइट का समय हो गया है। तुमसे मिलकर अच्छा लगा। ऑल द बेस्ट!” यह कह कर वह बाहरी दरवाज़े की ओर चल दी। शिफाली शिष्टाचारवश उसे बाहर तक छोड़ने गयी। 

उसके जाने के बाद वह शैली के विज़िटिंग कार्ड को टिकटिकी लगाकर देखती रही। उसकी आँखें एक बार फिर थोड़ी नम हो गईं। 

मूल: रविंदर सिंह सोढी, रिचमंड, कैनेडा 
फोन: 001 604 369 2371। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अचानक....
|

मूल लेखिका : शुभा सरमा अनुवादक : विकास…

अनाम-तस्वीर
|

मूल कहानी: गोपा नायक हिन्दी अनुवाद : दिनेश…

एक बिलकुल अलग कहानी – 1
|

 मूल कहानी (अँग्रेज़ी): डॉ. नंदिनी साहू …

टिप्पणियाँ

रश्मि लहर 2023/07/10 04:42 PM

बहुत प्यारी कहानी!

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

अनूदित कहानी

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं