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हाथों से झरती रेत

प्रवासी पंजाबी कहानी

मूल-लेखक: रविंदर सिंह सोढी
अनुवादक: प्रो. नव संगीत सिंह

रविंदर सिंह सोढी

 

जब गुरी की छोटी बहन सैमी घर आ रही थी तब गुरी और नतालिया कार में बैठकर बाहर जा रहे थे। 

नतालिया के साथ अपने भाई को देखकर उसने नाक-मुँह सिकोड़ा। जब नतालिया की नज़र सैमी पर पड़ी, तो उसने अपना हाथ हिलाया और उसका अभिवादन किया, लेकिन सैमी ने कोई जवाब नहीं दिया और घर के अंदर चली गई। 

नतालिया उसके इस व्यवहार से बहुत हैरान हुई और उसने गुरी से पूछा, “गुरी, वाह्ट हैपन्ड टु योअर सिस्टर? 
आइ वेवड टु हर, बट शी इग्नोरड! (गुरी, तुम्हारी बहन को क्या हुआ? मैंने उसे हाथ हिलाया, वह उसने अनदेखा कर दिया!)”

“फारगेट अबाऊट हर। शी'ज़ मैड! (उसे भूल जाओ, उसे गु़स्सा है!),” गुरी ने नतालिया के लिए कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा। 

सैमी अभी घर के अंदर ही गई थी जब उसकी माँ ने उसे देखा और ग़ुस्से से कहा, “क्या! तुम आज भी लेट आई हो? क्या तुम समय पर नहीं आ सकती?” 

सैमी, जो गुरी और नतालिया को एक-साथ देखकर पहले से ही ग़ुस्से में थी, ने कहा, “मुझे गुरी की तरह कार तो लेकर नहीं दी है। बसों में धक्के खाती आती हूँ। दस-पंद्रह मिनट देर क्या हो जाए, तो पूछताछ शुरू हो जाती है।”

ऐसा उत्तर सुन कर माँ को ग़ुस्सा आ गया और उसने सैमी से कहा, “एक तो चोर, साथ में चतुर भी! जब कमाओगी तब गाड़ी भी ले लेना। तुम तो अभी अपने माता-पिता के सिर पर ऐश कर रही हो।”

“ऐश मैं नहीं, गुरी कर रहा है। वह कहाँ एक जगह टिक कर काम करता है? वह गोरी के साथ घूमने के लिए कभी सौ, कभी दो सौ डॉलर माँगता ही रहता है।”

उसने अपना बैग सोफ़े पर फेंकते हुए कहा। 

“आज किसी से लड़कर आई हो क्या? घर आते ही झगड़ा शुरू कर दिया। झगड़ालू कहीं की! भाई को देख कर जलती है?” माँ सैमी के रंग-ढंग देखकर डर-सी गई। 

सैमी ने फ़्रिज से जूस की एक बोतल निकाली और एक गिलास में डालते हुए कहा, “यदि सच कहूँ तो झगड़ालू ही समझो। जब गुरी लंडर-सी नतालिया के साथ घर आता है तो तुम उन दोनों के आगे-पीछे घूमते हो, तुम भी और डैड भी। क्या तुम्हें पता है, वह गुरी से पहले भी दो-तीन बॉयफ़्रेंड्स के साथ रहती रही है! क्या तुमने कभी गुरी को रोका? हर चौथे दिन उसे घर लाने का क्या काम?” सैमी आज बदला लेने के मूड में थी। 

दरअसल, कई दिनों से वो अपने मॉम-डैड की पाबंदियों के कारण बहुत दुखी थी। जब भी वह पैसे माँगती थी, तो उसे कई बातें सुननी पड़ती थीं। फार्मेसी की मुश्किल पढ़ाई के कारण वह बहुत ज़्यादा काम नहीं कर सकती थी। वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बैंक से क़र्ज़ लेने की बात करती, तो उसके माता-पिता लड़ने को आते। उनका कहना था कि अन्य लड़कियाँ भी हैं, जो पढ़ती भी हैं और अपना ख़र्च चलाने के लिए साथ-साथ काम भी करती हैं। वे अपने घर की बेसमेंट में रहने वाली तीन लड़कियों की मिसाल देते कि वो अपनी फ़ीस कैसे भरती हैं? वे खाने-पीने की व्यवस्था भी करती हैं और किराए के लिए भुगतान भी करती हैं। सैमी अपने दिल में सोचती कि वह उनसे पूछें तो सही कि वे अपना समय कैसे व्यतीत करती हैं। वे जहाँ काम करती हैं, वहाँ उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? उन्हें मजबूरी में क्या कुछ नहीं सहना पड़ता। वह कई बार सैमी से अपने दिल की बात कह चुकी हैं कि कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश, विदेशों के छात्रों के लिए क़ैद के समान हैं। यहाँ की तस्वीरें ही अच्छी लगती हैं, असलियत का पता तब चलता है जब कोई व्यक्ति यहाँ आकर फँसता है। ऐसा कौन-सा काम है जो यहाँ नहीं करना पड़ता? जो लोग बाप से भी बड़ी उम्र के होते हैं, वो भी अपनी गर्लफ़्रेंड बनाने की ज़िद करते हैं। जिनको पशुओं की तरह बेसमेंट में रहना पड़ता है, उनकी ग़ुलामी भी करो। दो दिन किराया लेट हो जाए, तो घर से निकाल देने की धमकी देते हैं। बिजली, हीटर का ख़र्चा अलग से भरो, लेकिन फिर भी बुड़बुड़ाते रहेंगे। ये आंटियाँ तो तबीयत ख़राब होने का बहाना बनाकर घर का काम भी करवाती हैं। अगर किसी लड़की को कोई परिचित लड़का मिलने आ जाए, तो हंगामा करने से भी नहीं हिचकिचाती। कहीं ऊँची आवाज़ में बात करो या टी.वी. चालू करो तो लड़ने को आते हैं। ख़ुद चाहे उनके घरों में सारा दिन महाभारत चलती रहे। कई बार तो यह आंटियाँ ही लड़कियों को ग़लत रास्ते पर डाल देती हैं।

सैमी को पता था कि वह अभी अठारह वर्ष की नहीं थी, इसीलिए वह अपने माता-पिता की सहमति के बिना छात्र-ऋण लेने के योग्य नहीं थी। वह अपने घर के घुटन भरे माहौल से बहुत ऊब चुकी थी। उसे बहुत खीझ आती जब वह देखती कि उसका बड़ा भाई अपनी गर्ल फ़्रेंड नतालिया के साथ सरेआम घूम रहा है और बिना किसी डर के उसे घर भी ला रहा है। उस समय उसके मॉम-डैड के चेहरे की रौनक़ देखने लायक़ होती है। वे दोनों उस गोरी के आगे-पीछे घूमते हैं। डैड तो दो-तीन बार गुरी और नतालिया के साथ बैठकर पेग भी ला चुके थे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि कुछ गोरी लड़कियाँ देसी लड़कों को इसीलिए अपने जाल में फँसा लेती हैं, ताकि उनके सिर पर ख़ूब ऐश कर सकें। क्योंकि गोरे लड़के तो अपनी गर्लफ़्रेंड्स से बराबर का ख़र्च करवाते हैं। उन्होंने एक-दो बार बातों-बातों में गुरी को समझाया भी था कि कहीं कोई उल्टी-सीधी बात न हो जाए। 

डेड ने कभी ट्रक तो कभी टैक्सी चलाई थी, टैक्स चोरी करके दो मकान बनाए थे। गुरी ने शेखी-शेखी में नतालिया को सब कुछ बता दिया। डैड चिंतित थे कि कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ। गुरी कॉलेज के अंतिम वर्ष में था और पढ़ाई में भी ठीक-ठीक था, लेकिन नतालिया के प्यार में लट्टू उसे किसी तरह की परवाह नहीं थी। 

सैमी अक़्सर अपनी फ़्रेंडज़ से इस बारे में बातचीत करती थी कि उनके अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे माँ-बाप लड़का-लड़की में फ़र्क़ क्यों करते हैं? इन्होंने अपने लड़कों को तो पूरी तरह से ढील दे रखी है और जब इस ढील की वजह से बात बिगड़ जाती है तो माथे पर हाथ मारकर रोते हैं। यही नहीं, ये अपनी जवान हो रही लड़कियों पर कई तरह की बंदिशें लगाते हैं। खुले-डुले माहौल में पली-बढ़ी लड़कियों को यह समझ नहीं आती कि अगर उनका भाई अपनी गर्लफ़्रेंड को घर में ला सकता है तो लड़कियाँ अपने बॉयफ़्रेंड को क्यों नहीं? जब वे अपनी हमउम्र गोरी लड़कियों को बेरोक-टोक घूमते देखतीं तो सोचने पर मजबूर हो जातीं कि लड़कियों की आज़ादी के समय उनके माँ-बाप को पता नहीं क्या साँप सूँघ जाता है? 

कई गोरी लड़कियाँ तो इसी बात से देसी लड़कियों से नफ़रत करतीं। वह अपनी कई देसी सहेलियों को जानती थीं जिन्होंने अपने पिछड़े घरेलू माहौल कारण बाहर जानबूझ कर पूरी आज़ादियाँ लीं। शारीरिक आज़ादियों की तो किसी को परवाह ही नहीं थी। कभी किसी बहाने, तो कभी किसी, उन्होंने अपने बॉयफ़्रेंड्स के साथ दिन बिताए। अक़्सर ही लड़कियाँ ऐसी कुसंगत में चली जाती हैं, जहाँ पर उन्हें नशे की लत लग जाती। ऐसा वे युवा जोश के साथ-साथ उनके अपने माता-पिता से बदला लेने के लिए भी करतीं। नशा पूरा करने के लिए वे घर से पैसे की चोरी करतीं, अवसर मिलने पर माँ बाप के क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग करने से भी न हिचकिचातीं। उस समय परिवार को यह समझ न आता कि वह गहनों या पैसे के डूब जाने का अफ़सोस करें या समाज में अपनी कटी हुई नाक को बचाने के लिए कुछ करें। यद्यपि सैमी ने अभी तक कोई ऐसा क़दम नहीं उठाया था, तो भी कई बार उसके ज़हन में आता कि वह अपने माता-पिता को उनकी सख़्ती का मज़ा ज़रूर चखाए। 

वह यह सब कर सकती थी, अगर वह 18 साल की हो गई होती। अब तो वह सिर्फ़ माँ से ऊँचा-नीचा बोलकर दिल का गुब्बार निकाल लेती थी। उसने अभी तक पिता के सामने अपना मुँह नहीं खोला था, लेकिन एक-दो बार उसने नशे में धुत्त अपने पिता को ज़रूर खरी-खरी सुनाईं थीं। 

एक दिन जब उसके पिता दो-चार पेग लगाकर ऊल-जलूल बकने लगे तो उसने पिता को काफ़ी फिटकारा और अपनी भड़ास निकाली। इसी तरह जब एक बार गुरी ने ग़ुस्से में उसके ऊपर हाथ उठाने की ज़ुर्रत की तो सैमी ने उसे ख़बरदार किया कि वह ज़बान से बात करे और यदि उसने उसके ऊपर हाथ उठाया तो वह पुलिस बुला लेगी। इससे‌ उसकी माँ डर गई और उसने सैमी को बड़ी मुश्किल से शांत किया। बाद में बेशक, माँ ने सैमी को धमकी भी दी कि अगर उसने फिर से ऐसी बात कही, तो उसे अपनी सम्पत्ति से बेदख़ल कर दिया जाएगा। डराने के लिए माँ ने सैमी से यह भी कहा कि वह उसे इंडिया ले जाएँगे और उसकी शादी करके उसे वहीं छोड़ आएँगे। इस तरह की धमकियों को सुनकर सैमी एक बार तो चुप हो गई। उसने इस बारे में अपनी एक बहुत क़रीबी सहेली से बात की। उसने सैमी को समझाया कि अगली बार जब कभी फिर से उसे कोई इंडिया ले जाने की धमकी दे, तो वह निडर होकर बोल दे कि ‘वह लड़के वालों को साफ़-साफ़ कह देगी कि यह शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हो रही है और वह कैनेडा जाते ही उसे तलाक़ दे देगी; शादी तो उसे अपने बॉयफ़्रेंड से ही करनी है’। 

मौक़ा मिलते ही सैमी ने यह बात अपनी माँ को कह सुनाई। यह सुनकर उसकी माँ ने ग़ुस्से में उसके बाल तो नोचे ही, साथ-साथ उसके थप्पड़ भी जड़ दिए। ग़ुस्से में पागल सैमी ने अपने सेल फोन से 911 नं. डायल कर दिया। शुक्र है कि उस समय उसके पिता घर पर ही थे, उन्होंने बड़ी मुश्किल से दोनों को सँभाला। 

अपने कमरे में जाने से पहले सैमी ने अपनी माँ को धमकी देते हुए कहा, “मेरे कामों में ज़्यादा दख़ल-अंदाज़ी करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अपना भला-बुरा ख़ुद समझती हूँ। अगर तुमने सख़्ती करने की कोशिश की, तो और छह महीनों बाद मैं तुम्हें कहीं मुँह दिखाने लायक़ नहीं छोड़ूँगी।” यह कहकर वह पैर पटकती हुई चली गई। 

सैमी की माँ सोचने लगी कि इस मुँहज़ोर और ग़ुस्सैल लड़की का क्या किया जाए। वह उन दिनों को पछताने लगी, जब वे लोग कैनेडा आए थे। वह सोच रही थी कि कैनेडा की धरती पर बच्चों को मिली आज़ादी ने तो उन्हें बर्बाद करके रख दिया है। माँ-बाप तो सिर्फ़ इनको पालने में ही लगे रहते हैं। आज के बच्चे तो उड़ने योग्य होते ही अपना घोंसला तलाशने लगते हैं। माता-पिता गिरें किसी कुएँ में, उनकी बला से। 

वो इन्हीं विचारों में खोई हुई थी कि कब सैमी का डैड, निहाल सिंह आकर उसके बग़ल वाले सोफ़े पर बैठ गया, उसे पता ही नहीं चला। कुछ खाँसते ही उसका ध्यान उसकी ओर गया। अपने पति को सोफ़े पर बैठा देख आश्चर्य से उसने पूछा, “आज इतनी जल्दी आ गए? कैसे हो? ठीक तो हैं न आप?” 

“हाँ, ठीक हूँ, मन कुछ विचलित-सा है। टैक्सी चलाने को मन नहीं किया,” निहाल सिंह ने धीमी आवाज़ में कहा। “लेकिन तुम कहाँ खोई हुई थी। तुम्हें मेरे आने का पता तक नहीं चला। तुम तो बड़ी दूर से मेरे क़दमों की आहट सुन लेती हो!”

“कैसा खोना! ये संतान ही जीने नहीं देती,” उसने सिसकते हुए कहा। 

“क्यों, आज ऐसा क्या हो गया?” निहाल सिंह ने कुछ चिंतित होते हुए कहा। 

“यदि गुरी को किसी बात से रोकती हूँ, तो वह बाल नोचने को आता है। यदि बेटी को थोड़ा-बहुत समझाती हूँ, तो वह ऊँचा-नीचा बोलती है। मुझे समझ में नहीं आता कि जाऊँ तो कहाँ जाऊँ!”

निहाल सिंह ने इधर-उधर देखा और धीमे-से बोला, “बच्चे घर में ही हैं क्या?” 

“वह गोरी के साथ कहीं गया है। सैमी देरी से आई तो मैंने पूछ लिया कि लेट क्यों हो गई? इस वजह से मुझे इस नवाबज़ादी से खरी-खोटी सुननी पड़ीं।”

“सैमी अब कहाँ है?” 

“अपने कमरे में।”

निहाल सिंह ने उसे चुप रहने का इशारा किया। वह थोड़ा चिंतित होकर बोला, “सुनो, अब बच्चों को कुछ भी कहने का समय नहीं है। मैं भी पहले-पहल सैमी को बात-बात पर डाँट दिया करता था परन्तु आज की ख़बर सुनकर तो मैं स्तब्ध रह गया।” 

“क्या हुआ?” गुरनाम कौर ने घबरा कर पूछा। 

“वाहेगुरु वाहेगुरु! आजकल के बच्चों का तो रब ही राखा है। सभी टैक्सी स्टैंड वाले उदास-से बैठे हैं आज तो,” निहाल सिंह ने बताया। 

“पर हुआ क्या?” गुरनामो ने निहाल सिंह का चेहरा देखते हुए पूछा। 

“वह मेरा दोस्त है न जमरौद वाला पाला सिंह, जो मेरे साथ ही टैक्सी चलाता है।”

“हाँ, जिसकी बीवी कई बार हमें गुरुद्वारा में भी मिली है, उसे क्या हुआ?” 

“उसे कुछ नहीं हुआ। उसने अपनी बेटी को किसी बात पर डाँट दिया। शायद दो-चार घूँसे भी मारे होंगे। बेटी ने पुलिस बुला ली और अंदर करवा दिया और ख़ुद घर से निकल कर किसी गोरे के साथ भाग गई।”

“हाय, मैं मर जाऊँ! ऐसी औलाद से तो बेऔलाद रहना ही अच्छा!” गुरनामो के मुँह से निकला। 

“कुछ मत पूछो, गुरनामो! मुझे तो यह सुनकर टैक्सी स्टैंड पर बैठने का मन नहीं हुआ। मैं तो सीधे घर चला आया,” उसने सोफ़े से उठकर एक गिलास पानी पीते हुए कहा। 

कुछ देर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। 

“पाले की बातें सुनकर मैंने तो कानों को हाथ लगाया कि आगे से इन दोनों को कुछ नहीं कहना।”

“बेशक यह हमारे सर पर मिट्टी डाल दें? अरे, ये क्या बात हुई! इन्हें तो कुछ फ़र्क ही नहीं पड़ता। बच्चों को ग़लत कामों से तो रोकना ही पड़ता है न! नहीं तो ये हमारे सरों में छेद करेंगे।”

“यह देख लो, बेचारे पाले को बेटी की रोका-टोकी करने पर क्या नतीजा भुगतना पड़ा। इन देशों का तो रब ही राखा है!”

“मारो गोली, साले ऐसे कैनेडा को! अपनी ‘जुल्ली-तप्पड़’ बेचो, चार पैसे हाथ में करो और वापस गाँव चलते हैं। वहाँ रूखी-सूखी खा लेंगे,” गुरनाम कौर ने अपनी ओर से बड़ी समझदारी की बात की। 

निहाल सिंह ने गुरनामो की ओर देखते हुए कहा, “अब वहाँ गाँव में क्या है हमारा! पहले तो भाइयों से कहा-सुनी करके ज़मीन का बँटवारा कर लिया और उसे बेच डाला। तुमने तो टूटे हुए घर के भी पैसे ले लिए थे। अब भाई हमें मुँह नहीं लगाएँगे।

“साथ ही, वहाँ के हालात अब यहाँ से भी ज़्यादा बुरे हैं। जो लोग वहाँ जाकर आते हैं, वे कानों को हाथ लगाते हैं कि वे फिर से पंजाब वापस नहीं जाएँगे। नशा बाढ़ की तरह बिक रहा है, रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता। वहाँ अब किसी की कोई सुनवाई नहीं होती। यहाँ हम इज़्ज़त की रोटी तो खा रहे हैं।”

“तो क्या अब पाला अंदर बैठा इज़्ज़त की रोटी खा रहा है?” गुरनामो ग़ुस्से में बोली। 

“कभी-कभार ठंडे दिमाग़ से भी काम ले लेना चाहिए! हम वहाँ से यहाँ हज़ार गुना बेहतर हैं! दोष तो ख़ुद हमारे में हैं। रहते हम कैनेडा में हैं, लेकिन हमारी सोच गाँव वालों जैसी है। हमें ख़ुद को बदलना होगा,” निहाल सिंह ने लंबी साँस भरते हुए कहा। 

“हमारी तो जून ही बुरी है। पहले तो मैंने अपने माता-पिता के घर में उनकी डांटें-झिड़कें सहन की, शादी के बाद तुझ जैसे टेढ़े आदमी से वास्ता पड़ गया, रहती कसर खूंसट सास ने पूरी कर दी। मुई जब तक ज़िंदा रही, मुझे चैन से जीने नहीं दिया,” गुरनामो ने दिल की भड़ास निकालते हुए कहा। 

निहाल सिंह ने उसकी ओर कटु दृष्टि से देखा और कहा, “तू तो सारा दिन ख़ुद बेबे के साथ लड़ती-झगड़ती रहती थी। अब मरी हुई का भी पीछा नहीं छोड़ती। बात किस विषय पर हो रही है, यह अलग ही दिशा में चल पड़ी।”

गुरनामो इस बात को और बढ़ाना नहीं चाहती थी, इसलिए वह चुप हो गई। 

निहाल सिंह भी कुछ देर की ख़ामोशी के बाद धीरे-से अपनी पत्नी को कहने लगा, “देखो, बुद्धिमान लोग कहा करते हैं कि हथेली में रेत रखकर जितना उसे कसोगे, रेत धीरे-धीरे मुट्ठी से बाहर झर जाएगी। बुद्धिमानी इसी में है कि मुट्ठी खुली छोड़ दो। रेत हथेली पर टिकी रहेगी।”

गुरनामो यह सोचने लगी कि आज के बच्चे भी रेत बन गए हैं, जो माँ-बाप द्वारा मुट्ठियाँ कसते ही हाथों से झरने लगते हैं!”

 

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