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नारी-मन की सहज और सुकोमल भावनाओं को दर्शाता काव्य-संग्रह: मन चरखे पर 

समीक्षित पुस्तक: मन चरखे पर (काव्य संग्रह)
लेखक: नीलम पारीक
प्रकाशक: पुस्तक मन्दिर, राजीव गांधी मार्ग, बीकानेर (राज)
मूल्य: ₹200.00
पृष्ठ संख्या: 96

नीलम पारीक अपने पहले काव्य संग्रह ‘कहाँ है मेरा आकाश’ द्वारा हिंदी काव्य जगत में पहले से ही चर्चित हो चुकी हैं। सिरसा (हरियाणा) में जन्मी नीलम ने कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में पीजी, और महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर से बीएड, राजस्थानी साहित्य में पीजी, पत्रकारिता में यूजी किया है और वर्तमान में केसरदेसर जाटान, बीकानेर में अंग्रेज़ी शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने हिंदी और राजस्थानी भाषा में कविताएँ और कहानियाँ लिखने के अलावा कुछ हिंदी लघुकथाएँ लिखीं और बाल साहित्य पर भी काम किया है। 

समीक्षाधीन काव्य-पुस्तक 'मन चरखे पर' को कवयित्री ने तीन खंडों में विभाजित किया है—वसंत, हेमन्त और ग्रीष्म। इसमें कुल अट्ठावन कविताएँ हैं। सबसे अधिक कविताएँ वसंत खंड (31) में हैं, उसके बाद ग्रीष्म खंड (14) और सबसे कम कविताएँ हेमंत खंड (13) में हैं। वसंत खंड में प्रेम-कविताएँ हैं, हेमंत खंड में जीवन की मीठी-तीखी यादें हैं; स्त्री विमर्श की कविताएँ ग्रीष्म अनुभाग में क़लमबद्ध की गई हैं। 

कविता भाव-अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है। कविता में ही कोमल भावनाओं को अच्छी तरह व्यक्त किया जा सकता है। जब भी किसी व्यक्ति के मन में भावनाओं और संवेदनाओं के बादल उमड़ते हैं तो वह काव्यात्मक उड़ानों के माध्यम से उन्हें सहेज लेता है। पुरुष और महिलाएँ अलग-अलग भाव-जगत से संबंधित हैं। जहाँ पुरुष कठिन परिश्रम के लिए जाने जाते हैं, वहीं महिलाएँ करुणा, सहनशीलता का दूसरा नाम हैं। 

किताब के नाम के मुताबिक़ इसमें मन से जुड़ी चार कविताएँ हैं—मन चरखे पर, मन मलंग, मन हिरण (वसंत खंड) और औरत का मन (ग्रीष्म खंड)। चूँकि पहला भाग प्रेम-कवितायों का है, इसलिए इसमें चार प्रेम-रंग की कविताएँ भी हैं—पाती प्रेम भरी, प्रेम, प्रेम, प्रेम-रंग। इस संग्रह में माँ/नारी पर आधारित 6 कविताएँ शामिल हैं—माँ, माँ-2, स्त्री, पचास साल की औरतें, औरत का मन, हे स्त्री। 

नीलम स्वयं एक महिला हैं और स्त्री-मन की बहुमुखी प्रकृति को जानती हैं। उन्होंने नारीत्व की अनेक परतों को छुआ है—दुःख, सुख, पीड़ा, आकांक्षा, विपदा आदि। बचपन से लेकर जवानी तक, जवानी से लेकर बुढ़ापे तक कई पड़ाव आते हैं और एक महिला इन सभी पड़ावों से गुज़रती है, बिना किन्तु, परन्तु किये। बेटी की शादी की चिंता, दहेज़ की चिंता, पोते-पोतियों/नाते-नातिन को लाड़-प्यार करना, व्रत रखने वाली महिलाएँ कैसे अपनी पीड़ा को सहती हैं, कैसे वे अपनी बीमारी की चिंता छोड़कर दूसरों के लिए हँसती हैं—यह सब कुछ ब्यान हुआ है—‘पचास साल की औरतें’ (पृष्ठ 79-80) कविता में। 

संग्रह के अंतिम भाग की कुछ कविताएँ चुनौतीपूर्ण हैं। मनुष्य को मनुष्य बनने की सीख देने वाली कविता ‘हे मानव’ (87-88) में कवयित्री ने मनुष्य को अहंकार त्यागने की सलाह दी है और कहा है कि उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ सोचना चाहिए! अपने अहंकार में डूबकर पर्यावरण को बिगाड़ना, प्रदूषण बढ़ाना मनुष्य को शोभा नहीं देता। समाचार-पत्रों में भ्रूणहत्या, बलात्कार, आतंकवाद आदि की ख़बरें पढ़कर स्त्री का कोमल हृदय विचलित हो उठता है और स्वप्न में भी वह इस भयानक दृश्य को याद करके चीत्कार मचा देती है। कवयित्री ने नारी की सहनशक्ति का आख्यान करते हुए कितना सत्य कहा है कि वह खाना बनाते समय वाशिंग मशीन में कपड़े भी धो लेती है; खाना खाते समय उसे सास-ससुर की दवा और दूध-जूस भी याद रहता है; बच्चों को होमवर्क करवाते समय धुले और सूखे कपड़े उतार लाती है; रात को बिस्तर पर जाने से पहले वह अगले दिन बनाने वाली सब्ज़ी की व्यवस्था भी करती है, ऑफ़िस में ड्यूटी करते समय बिजली-पानी-मोबाइल का बिल भरना भी याद रखती है और सबसे बढ़कर ससुराल वालों द्वारा अपने मायके को दिए जाने वाले ताने सहती है। लेकिन एक महिला की वजह से घर के सभी सदस्य एक सूत्र में बँधे रहते हैं, जुड़ा रहता है घर:

“क्योंकि जानती है वो 
क्या याद रखना है याद रखकर 
और क्या भूल जाना है 
याद रखकर भी 
जबकि सच तो यह है कि 
 
स्त्री कुछ नहीं भूलती
कुछ भी नहीं . . .” (पृष्ठ 76) 

“माँ के पास कहाँ था वक़्त . . . 
सिखाने का, समझने का, 
बैठाकर गोद में अपनी, 
फिर भी सिखा दिया, 
हर हाल में जीना, 
हर पल को जीना, 
अपने लिये, 
अपनों के लिये।” (पृष्ठ 59) 

संग्रह में बचपन की मीठी यादें (आ लौट चलें), माँ का आँचल (जादू), पिता से दूर होने का एहसास (शतरंज) आदि का वर्णन विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। 

दरअसल, संग्रह की सभी कविताएँ रिश्तों की पवित्रता पर केंद्रित हैं। रिश्तों के इंद्रधनुषी रंगों से भरी ये कविताएँ स्त्री के मन में एक अस्पष्ट आकार से साकार हो उठती हैं और फिर बनती है—शुद्ध और निर्मल कविता, बिना किसी उदात्त के, बिना किसी बनावटी आभा के। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के वित्तीय सहयोग से प्रकाशित कविता की यह पुस्तक स्त्री मन की अनदेखी/अनजानी राहों की गहराई को पहचानने की कोशिश करती है। जीवन की आपाधापी, महानगरीय संस्कृति, जीवन के विविध रंगों को दर्शाती नीलम पारीक की यह पुस्तक भावनाओं की कोमलता को सरल, सहज शब्दों में प्रस्तुत करती है। 

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टिप्पणियाँ

Neelam Pareek 2024/07/03 09:16 PM

शानदार समीक्षा के लिए हार्दिक आभार...

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