अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कहाँ है मेरा आकाश? — पुस्तक समीक्षा

पुस्तक: कहाँ है मेरा आकाश? 
कवयित्री: नीलम पारीक
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ: 120
मूल्य: ì 120.00

नीलम पारीक एक हिन्दी लेखिका हैं। उन्होंने अँग्रेज़ी और राजस्थानी साहित्य में एमए के साथ-साथ बी.एड. भी किया है और वर्तमान में एक अँग्रेज़ी शिक्षका के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने हिंदी और राजस्थानी भाषाओं में कविताएँ और कहानियाँ लिखी हैं और कुछ लघुकथाएँ भी लिखी हैं। 

उनकी एकमात्र पुस्तक 'कहाँ है मेरा आकाश' (काव्य संग्रह) में कुल 83 कविताएँ हैं, जिनमें से सभी बिना शीर्षक वाली हैं और इनमें केवल क्रम संख्या (1, 2, 3 . . .) लिखी है। नीलम ने यह संग्रह अपने पापा-मम्मी को समर्पित किया है और वह लिखती हैं, “पापा, जिन्होंने सिखाया सपने देखना, उन्हें साकार करने के लिये अपना आकाश तलाशना/आकाश में उड़ान भरने का हौसला दिया तो शिक्षा के पंख भी दिये उड़ान भरने को। मम्मी ने सिखाया धैर्य, हर परिस्थिति में अपने को ढालने का हुनर, सहनशीलता का गुण, माँ के जैसा स्नेह बाँटना।” (पृष्ठ 3) 

चूँकि नीलम स्वयं एक महिला हैं, इसलिए ये कविताएँ नारीवादी छवि को दर्शाती हैं। कहीं यह महिला बेटी, कहीं बहन, कहीं माँ, कहीं पत्नी तो कहीं प्रेमिका। इस तरह एक महिला को विभिन्न रूपों में चित्रित किया है—नीलम ने। बेटी के लिए उनके विचार कितने प्रेरक हैं और वह अपनी बेटी को कितने विशिष्ट रूप से चित्रित करती हैं:

 बेटा है गेंदा तो
 गुलाब हैं बेटियाँ, 
 बेटा आफ़ताब
 महताब हैं बेटियाँ, 
 . . . . . . . . . . . . 
बेटा न समझ पाए शायद
ज़ुबान भी
पढ़ लेती चेहरे की
किताब हैं बेटियाँ। (पृष्ठ 17) 
 
 नीलम स्त्री के सम्मान में क़लम उठाती है, तो वह स्त्री के मन का दर्द देखती है:
 
 आओ हम पहल करें
 समझें नारी मन का दर्द
 नारी जो माँ है
 बेटी है
 बहू है, भाभी है
 कितने रूप नारी के
 और कितने रूप दर्द के
 आओ करें सृजन
 एक नई दृष्टि का
 जो नारी के दोष ढूँढ़ने से पहले
 उसकी पीड़ा को देख सके। (पृष्ठ 39-40) 

यद्यपि इस संग्रह की शीर्षक कविता बहुत ही संक्षिप्त (केवल नौ पंक्तियों की) है, लेकिन इसमें प्रस्तुत भाव नारी-मन के अंतरतम भाग को रेखांकित करता है। इसमें कवयित्री माँ को सम्बोधित होकर अपने अस्तित्व के बारे में पूछती है:

 माँ
 तू तो कहती थी
 बेटियों तो होती हैं चिड़ियाँ
 उड़ जाती हैं इक दिन
 पर माँ
 चिड़ियाँ तो उड़ती हैं
 खुले आकाश में
 मैं चिड़िया हूँ तो
 कहाँ है मेरा आकाश . . .? (पृष्ठ 87) 

जैसे उपर्युक्त कविता में नीलम अपनी माँ से अपने आकाश के बारे में जानकारी माँगती है, तो इस कविता के जवाब में कवयित्री स्वयं अपने पिता को संबोधित होती है और अपने आकाश को प्राप्त करने की जानकारी देती है। इस लंबी (लगभग चार पृष्ठ, पृष्ठ 91-94) कविता में, कवयित्री पहले अपने पिता से कुछ प्रश्न पूछती है, फिर अपने पिता के माध्यम से अपनी संभावनाओं को प्रकट करती हुई देखती है। 

जहाँ कवयित्री ने जीवन को प्रेरणा देती कविताओं की रचना की है:

 जब तुम मेरी मौत के
 साधन जुटा रहे थे
 मैं कोयल संग
 गीत कोई गुनगुना रही थी। (पृष्ठ 72) 
 
वहीं उसने मौत को भी परिभाषित किया है। वह मौत को नींद का दूसरा नाम देती है:

 मौत . . .! 
 तुम क्या हो? 
 तुम भी तो बस नींद ही तो हो
 कुछ पल की, या बरसों की
 या फिर सदियों की
 फिर तुम से कैसा डर, कैसा भय 
 होगा अवश्य जीवन उस पार भी (पृष्ठ 83) 

इस संग्रह की सभी कविताएँ पारिवारिक, सामाजिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक हैं। वास्तव में नीलम ने नारी-मन के दर्द को बड़े ही सौहार्द और स्वतंत्रता के साथ व्यक्त किया है और मेरे विचार से यही इन कविताओं की उपलब्धि है। इस संग्रह में अतीत की कड़वी-मीठी यादें, भविष्य के रंगीन सपने, समाज/देश को सकारात्मक दिशा में ले जाने वाली आकांक्षाएं शामिल हैं। 

साधारण और सामान्य बोली जाने वाली हिंदी भाषा में लिखी गई इन कविताओं का हर पाठक आनंद ले सकता है। लेकिन एक कविता में संस्कृत के शब्दों की भी भरमार है:

आकाशात् पतितं तोयं
सागरम् प्रति गच्छति . . . 
सागरम् प्रति गच्छति . . . (पृष्ठ 108) 

(यह संसार दर्शन को व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ हैं . . . जैसे जल समुद्र से बादल बनकर आसमान की ओर जाता है और फिर बादल से बरसकर जल धरती पर आ जाता है . . . धरती पर नदियों के साथ प्रवाहित होता हुआ फिर से समुद्र में चला जाता है . . . इसी प्रकार मनुष्य संसार में जन्म लेता है और पुनः ईश्वर में लीन हो जाता है . . .) 

नीलम पारीक को उनके पहले काव्य-संग्रह के लिए बधाई! उम्मीद की जानी चाहिए कि यह साहित्य की दुनिया में, ख़ासकर कविता की दुनिया में नई ऊँचाइयों को छुएगा! 

प्रो. नव संगीत सिंह, 
स्नातकोत्तर पंजाबी विभाग, 
अकाल यूनिवर्सिटी, तलवंडी साबो-151302 (बठिंडा), पंजाब 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

अनूदित कहानी

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं