स्वागत है
काव्य साहित्य | कविता आनंद कुमार16 Mar 2016
काली घनेरी रात की
सोई जब सुबह जगी
हुआ आगमन धूप का
चिर प्राण ऊर्जा के भूप का
स्वागत है, स्वागत है, स्वागत है।
स्वागत में चराचर भूप के
मृदु मधुर धूप के
हरे भरे पेड़-पौधे
नत हैं, नत हैं, नत हैं।
आज पंछियों के कलरव ने
नभ को नये स्वर दिए
फिर कौन ठहरे किसलिए
सब मुक्त हैं, मुक्त हैं, मुक्त हैं।
खिल उठे हैं चेहरे सभी के
मुरझाए से थे सब कभी के
मन भी आज ख़ुशी से
उन्मुक्त है, उन्मुक्त है, उन्मुक्त है।
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