तारे
काव्य साहित्य | कविता देऊ जांगिड़1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
शाम के बाद जब हुआ अँधेरा,
मेरी नज़रें मिली तारों से,
मन में ख़्यालात आने लगे,
यह गुफ़्तुगू करते हैं? इशारों से।
सवालों की मन में यूँँ बौछार हुई,
चाहा बात करूँ इन प्यारों से,
टूटकर जो तुम आते हो धरती पर,
क्या नाराज़गी होती है सितारों से?
घर से दूरियाँ हमेंं ख़ूब सताती हैं,
दूर रह पाओगे ब्रह्मांड परिवारों से,
मौन कथा मेंं वह मुस्कुराकर बोले,
कभी-कभी गुफ़्तुगू होती है साहित्यकारों से!
सितारों से भला कौन ख़फ़ा होता है,
मिलना चाहते हैं प्रकृति के नज़ारों से,
प्रकृति से मिलने की आकांक्षा है ऐसी,
दूर रह जाएँगे करोड़ो-हज़ारों तारों से।
क्यों जग रहा है, सो जा प्यारे,
फिर बात करेंगे संग नए यारों से!
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