उम्मीद (जयदेव टोकसिया)
काव्य साहित्य | कविता जयदेव टोकसिया15 Oct 2019
बीच रास्ते खड़ी थी
किताब लिए खड़ी थी
पढ़ने की तीव्र इच्छा की
प्यास उसकी बड़ी थी
वह देहाती गाँव की
मटमैले से कपड़े पहने
कहीं दूर स्कूल जाने की
आस लिए खड़ी थी
पढ़ लिख कुछ करने का
विचार लिए खड़ी थी।
अँधेरे में उजाले का
निशान लिए खड़ी थी
वो दुनिया में अपने अस्तित्व का
निशान लिए खड़ी थी
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