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वीर भोग्या वसुंधरा

बच्चे ने जब गठरी बाँधी, किया प्रणाम, 
हुआ सन्नद्ध वह, करने को जीवन प्रयाण
 
माँ ने कहा ले जाओ ये पाथेय सफ़र का
जाओ! 
पर कहीं भटक न जाना, 
शाम होते ही घर लौट आना
लक्ष्मी तो है आनी-जानी, 
पैसा तो है बहता पानी
इसलिए तू विद्यार्जन में मन को लगाना
माता-पिता से बातें तमाम हुईं, 
कुछ ख़ास भी, और कुछ आम हुईं
बालक निकला जाने को, 
जीवन साध्य पाने को
 
पर यह तो मायानगरी है, दोस्तो! 
यात्रा में मनोरंजक कौतुक देख, 
वह नन्हा बालक मचल गया, 
स्वर्णिम स्वप्न जो दमक रहा था, 
भटकाव के पदचापों से कुचल गया
खेल में मगन हुआ वह ज्यों-ज्यों, 
लगी घटने उसकी निष्ठा त्यों-त्यों
किसी ने कहा उससे-इसी पल में ही 
बस जीवन है, न पहले था न आनी है
जो जिया, वो जी गया, 
क्या राजा क्या रंक, सबकी यही कहानी है, 
मौज कर! अरे मौज कर!! 
 
आकर्षण के शैवाल जाल में 
इस तरह वह नन्हा बालक अटक गया
काई बड़ी गाढ़ी थी, 
सँभला गिरा, फिर सँभला फिर गिरा
डगमग-डगमग पाँवों से वह, 
जाने कहाँ-कहाँ रपट गया 
 
पर तल पर जब लगा जाकर तन, 
तब स-चेत हुआ उसका संस्कारी मन
अब समझा, अब समझा-सब समझा-
बच्चे ने समझकर बार-बार स्वयं को समझाया 
दौड़ पड़ा वह सुध पाकर, 
पथ-च्युत नहीं होना है, ये दोहराया
 
पोंछ श्रम-सीकर, अथक कर्म क्रियमाण
याद कर मात-पिता की सीख को, 
सतत परिश्रम ही देगा परिणाम! 
 
पृथ्वी की जो चाल बदल दे, 
ऋतुएँ क्या जो काल बदल दे, 
पहचानो, वो तुम ही हो—वो तुम ही हो! 
अतल जलराशि में जाकर, 
सीपी में बंद मोती को जो लेकर आएगा
शूरवीर वो कहलाएगा, शूरवीर वो कहलाएगा! 

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