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वो पुरानी चप्पल . . .

वो पुरानी चप्पल, जाने-पहचाने कई पुराने रास्तों पर साथ निभाया है उसने। कई अनजाने राहों की भी हमसफ़र रही है वो। इसका साथ छोड़ने का दिल नहीं करता। इसकी गोद में ही पाँव ख़ुद को सुरक्षित पाते हैं और चलने लगते हैं बेफ़िक्र होकर। कभी-कभी तो बिलकुल नटखट-मासूम बनकर भागने-दौड़ने भी लगते हैं। धूल से भरी सड़कें भी इसके साथ चलते-चलते मख़मली कालीन-सी लगती हैं क्योंकि ये धूल को ख़ुद से तो लपेट लेती है पर मजाल है जो मेरे पाँव तक ये पहुँच जाए।

कई बार इसने मेरे साथ सड़कें नापते हुए किसी मंदिर या महफ़िल का सफ़र भी तय किया है। कई मेले, सभाओं और आयोजनों की साक्षी रही है ये। इन स्थानों पर भीड़ का हिस्सा बन कर भी ईमानदारी से मेरा साथ निभाती रही। इसके कारण मेरे मान-सम्मान में कोई कमी न आने पाए, यह सोचकर इसका पूरा ध्यान रखा मैंने। कभी गीले-मुलायम कपड़े से सहलाया इसे तो कभी पॉलिश से चमकाया इसे। इसकी चमक में मेरे स्नेह की चमकार भी शामिल है, यह जानकर कई बार इतराई है वो। तभी तो मेरे पैरों में कोई नुकीली चीज़ चुभ न जाए, इसका पूरा ध्यान रखा है इसने।

कई बार कुछ कार्यक्रमों में न चाहते हुए भी इसे उतारकर अपने से अलग करने का कुअवसर भी आया। मेरी इस विवशता को जानते-समझते हुए थोड़ी अनमनी-सी होकर मुझसे जुदा हुई और फिर कार्यक्रम की समाप्ति पर थोड़ी-सी नाराज़ होती हुई एक कोने में सिमटी-सिकुड़ी मेरे आने का इंतज़ार करती रही। मेरे आते ही मेरे साथ चल पड़ी घर की राह पर। थकी-हारी, हाँफती साँसों के साथ भी साथ निभाया इसने और दरवाज़े की ओट में जाकर ही सुकून की साँस ली। ऐसी वफ़ादारी की मिसाल को कैसे ख़ुद से जुदा कर दूँ मैं?

हाँ, माना कि बरसाती मौसम में ये दग़ा दे जाती है। कीचड़ से सनी सड़कों का मुक़ाबला नहीं कर पाती। लेकिन जब ख़ुद को ही नहीं बचा पाती तो भला मुझे कैसे बचा पाएगी? पर क्या केवल बरसाती मौसम की ही साथी है मेरी? सरदी, गरमी में भी तो साथ निभाया है इसने। सरदी में मोज़ों के साथ दोस्ती करने में समय लगता है इसे। लेकिन जब दोस्ती हो जाती है, तो बिना इसके रह नहीं पाती। मुझे तकलीफ़ न हो इसलिए मोज़ों का पूरा साथ निभाती है। गरमी में तो झुलसते पैरों की सबसे प्यारी साथी रही है ये। तपती धूप जग अंगारे बरसाती है तो ये इसे चिढ़ाते हुए मेरे गर्म तलवों को प्यार से अपनी गोद में समेट लेती है।

आज वो पुरानी चप्पल समय के साथ घिसते-घिसते बूढ़ी हो गई है पर दिल और दिमाग़ में इसके साथ बसी यादें घिसती नहीं हैं। मैं कैसे नाता तोड़ दूँ इससे? कैसे अलविदा कह दूँ इसे? ये मेरी यादों की धरोहर है जिसे भुलाने का दिल नहीं करता।

लोगों के बहकावे में आकर एक बार ऐसा लगा कि इससे रिश्ता तोड़ ही लूँ। किसी कचरे के डिब्बे के हवाले कर दूँ या किसी ख़ाली पड़े मैदान में फेंक आऊँ पर दिल और दिमाग़ दोनों ने साथ नहीं दिया। पुरानी ही सही, साथ तो निभाती है। मेरे आसपास रहकर मेरा मनोबल बढ़ाती है। वे लोग जिनके पास पुरानी या नई एक भी चप्पल नहीं है, जो बेचारे नंगे पाँव दिन भर का सफ़र तय करते हैं, उनसे तो लाख गुना अच्छी क़िस्मत पाई है मैंने। जो ये पुरानी होकर भी ईमानदारी से मेरा साथ निभा रही है। इसकी इस सदाशयता पर मर मिटने का दिल करता है, फेंकने का नहीं।

वार्डरोब में नई चप्पल भी है। काफ़ी अच्छी और महँगी। आरामदायक और आकर्षक। लेकिन उससे नाता जुड़ नहीं पाता। जिससे जुड़ा हुआ है उससे टूट नहीं पाता। क्या आपको भी मेरे समान ही अच्छी लगती है अपनी वो पुरानी चप्पल?

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