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आयुष

आयुष हमारा नॉटी बॉय है, बहुत-बहुत शरारती। उसकी सबसे बड़ी पहचान है, उसकी जादुई, मोहक मुस्कान, जिससे वह किसी का भी दिल जीत सकता है। घर में आए किसी भी अजनबी की तरफ़ वह दोस्ती का हाथ बढ़ा देता है। बतियाने लगता है। आप कौन हो? माली अंकल आपका नाम क्या है? यह कौन सा पौधा है . . . अंकल मुझे गुलाब चाहिए। मैंने अपनी ममा को, मॉम को और मैम को देना है। ला दोगे न माली अंकल। अपने वार्तालाप से वह दोस्ती कर लेता है। 

जैसे ही बोलना सीखा, अपने पापा को फोन करने लगा। उसकी आवाज़ पर मुग्ध और नेह से अभिभूत हो पापा पूछते—आयुष! आपके लिए क्या लाऊँ? अपने खाद्य ज्ञान का पूरा इस्तेमाल करता बोल देता—पापड़ी चाट, मोतीचूर, गुलाबजामुन . . . वग़ैरह वग़ैरह। जब कि इतना छोटा बच्चा भला क्या खाएगा! 

इडली ख़ूब पसंद है आयुष को। छोटू के हाथ की पूड़ी के लिए भी उसका क्रश रहा है। जाते समय पूड़ी बनवा कर साथ ले जाता था, भले ही बाद में खाने का याद ही न रहे। इडली प्रेम देख मैंने भी इडली बनानी, खिलानी और खानी शुरू कर दी। अब, जबकि सबका इडली में टेस्ट बन गया है, उसे आलू की पराँठी भाने लगी है। उसके पापा ले जाने के लिए गाड़ी स्टार्ट कर चुके होते हैं और वह किचन के पास खड़ा होकर कह रहा होता है, आलू की पराँठी खाकर ही जाऊँगा। 

सुबह सुबह उठकर बस में घंटा भर बैठ स्कूल जाना तो बिलकुल नहीं भाता उसे। कई बार बहाने बना लेगा, ज़िद करेगा और बस निकल जाएगी, तब ममा के साथ मज़े से दस मिनट में स्कूल पहुँच जाएगा। 

आयुष के पास एक तोता है। जिसका नाम उसने स्पाइकी रखा हुआ है। कई बार वह स्पाइकी को भी साथ ले आता है। आते ही उसे पिंजरे से निकाल देगा। स्पाइकी लॉबी में उड़ेगा। आयुष के कंधे या सिर पर बैठेगा। ग्रिल पर आयेगा। पूरी मस्ती करेगा और आयुष उसका पिंजरा उठा कामवाली के पास ले आयेगा—आंटी इसे साफ़ कर दो। स्पाइकी की कटोरियाँ भी धो दो। उसने खाना खाना है और आंटी भी स्पाइकी के पिंजरे को साफ़ करते हुए नन्हे से बतियाती जाएगी। फिर बड़े प्यार और उत्तरदायित्व के साथ उसका खाना और पानी रखवाएगा। स्पाइकी के खाने के प्रति इतना सचेत आयुष, अपना खाना तो हाथ में आई-फोन पकड़, ममा से ही खाएगा। कोई कोल्ड-ड्रिंक, कोई शर्बत उसे पसंद नहीं। आजकल वह सिर्फ़ ऑरेंज ग्लूकोज़, टैंग ही पसंद कर रहा है। न मिले तो पानी से ही काम चला लेता है। 

आयुष चुप तो रह ही नहीं सकता। मॉम आप इतने काम कैसे कर लेते हो—घर का काम, बाज़ार का काम, पढ़ने-पढ़ाने-लिखने का काम। आप हमारे साथ खेलते भी हो और होमवर्क भी करवा देते हो। स्कूल असेंबली की तैयारी भी करवा देते हो। वह हर चीज़ का नोटिस लेता है। ‘मैं भी आप जैसा बनना चाहता हूँ। आज मैं भी लिखूँगा’ और आयुष स्टडी-टेबल चेयर पर जाकर सेट हो जाता है। वह पेपर जो उसे ड्राइंग के लिए दिया था, उस पर पूरे संवेग, आवेग और मनोवेग के साथ लिखने लगता है—माइ नेम इज़ आयुष। आई एम सेवेन इयर्स ओल्ड, माई पापा इज़ . . . इतना सुंदर और साफ़ कि मॉम वह पृष्ठ सँभाल कर रखने के लिए बाध्य हो जाये। 

दो दिन से चुप-चुप है। क्या हुआ? कुछ ज़ुकाम सा लग रहा है। कुछ टाँग दुख रही है। ममा ने इबुजेसिक दे दी है। ख़ूब सोया है आज तो। चलो थोड़ा आराम हो जाएगा। बेड पर ही बैठा है, पर न स्वयं निष्क्रिय बैठेगा और न मुझे बैठने देगा। अब लूडो, कैरम, ताश, ब्लॉकस आदि से ही उसे मन बहलाना है। सोने से पहले मोबाइल गेम्स खेलना उसकी रूटीन है: करोड़पति, कलरिंग, अल्फ़ाबेट और जी.के. गेम्स, यू-ट्यूब से कवितायें वग़ैरह। कोरोना के कारण उसे अपना लैपटॉप मिल गया। अब तो वह यू-ट्यूब पर, नेटफ़्लिक्स पर कुछ भी लगा लेता है। बदरी और बुद्ध सिरियल उसे ख़ूब पसंद है। 

उसकी जिज्ञासाओं का तो कोई अंत नहीं। छोटे बच्चे के लिए उसका घर ही पूरी दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है। बहुत छोटा, जब मेरे पास यानी नानी के घर आता था तो पूछता—मॉम आपके पापा कहाँ हैं? आपके दादा जी कहाँ है? आपकी दादी जी कहाँ है? उसके सारे सवालों का उत्तर देना मेरे बस की बात नहीं—मॉम! हम आपको मॉम क्यों कहते हैं और नानू को नानू क्यों? आप पैसे कहाँ से लाते हो, क्या काम करते हो? 

दीदी से प्यार भी बहुत है और झगड़ा भी उसी से होता है। उसके साथ मिल-बैठकर खेलता भी है और मनमानी पर आ जाए तो धक्का दे भाग भी जाता है। दीदी को मार भी लेता है और रोनी सूरत बना ममा से झूठी शिकायत भी लगा देता है कि दीदी ने मारा। और तो और एक दिन उसने दीदी का टेडी यूनिकोड छत से पड़ोस के बंद पड़े घर में फेंक दिया और दीदी बेहाल हो गई, रो-रो कर उसे साँस ही नहीं आ रही थी। 

आयुष अपने व्यक्तित्व के प्रति अतिरिक्त सजग है। कहीं भी जाना हो, झट से मुँह धोकर, बालों को थोड़ा पानी लगा, कंघी या ब्रश पकड़, ड्रेसिंग रूम के शीशे के सामने आ बाल सँवारने लगेगा। 

‘मॉम मुझे डिओ चाहिए।’ पूछा—कौन सी? अब वह परेशान हो गया। यह तो उसके ज्ञान भंडार से बाहर का प्रश्न हो गया और फिर जब रबिंग और सप्रे वाली दोनों डिओ मिल गईं तो ख़ुश हो गया। उसकी मुस्कान देखने ही वाली थी। 

खिलौना कारों का पूरा भंडार है आयुष के पास। हर रंग, आकार और प्रकार की कार। रंगबिरंगी बिजलिओं वाली, म्यूज़िक वाली, बैटरी कार में बैठ उसे बाहर चलाना बहुत भाता है। लेकिन अब आयुष बड़ा हो रहा है, बड़ा हो गया है, दोपहिया साइकिल उसका फ़ेवरेट बन गया है। 

मौसेरे, फुफेरे सभी भाई-बहनों से छोटा है। अपने को हीरो समझता है। कज़नज का स्नेह और बड़ों का दुलार उसके हिस्से में ख़ूब आया है। 

शायद लड़का होने के कारण वह समझ रहा है कि पुरुषीय वर्चस्व पैसे से जुड़ा है। मौसा, फूफा, नानू, दादू-सब से पूछ लेता है—आप अर्न कैसे करते हो? 

जब मालूम पड़ता है कि ममा-पापा से ख़ूब ज़िद करके वह मेरे पास आया है, तो मन बाग़-बाग़ हो जाता है, बहुत-बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि मुझे तो हर पल अपने लाड़ले की प्रतीक्षा होती है। 

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