अलौकिक शक्ति
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. मधु सन्धु1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
पढ़ाई में फिसड्डी रहा। इतनी मोटी-मोटी किताबें। पढ़ना, समझना और रट्टे मारना-उसके बस में नहीं था यह सब। और तो और चपरासी की नौकरी के लिए भी ‘प्लस टू’ चाहिए होता है।
श्वास रोग, पाचन रोग, त्वचा रोग-सब धरोहर में ही मिल गए थे उसे-परिणामतः वह जन्म से ही काँगड़ी पहलवान था।
नकारा और निखट्टू होने से वह न घर का रहा न घाट का—शादी का तो प्रश्न ही नहीं था।
लेकिन मर्द का बच्चा था वह—कुछ न कुछ तो करना ही था।
साथी भी अपने जैसे खोज ही लिए उसने और धूनी रमा ली। यह बिज़नेस दिनों में ही फलने-फूलने लगा।
अब वह भक्तों को नौकरी के लिए तावीज़ देता।
स्वास्थ्य के लिए चूर्ण की शीशियाँ देता, आसन बताता।
शीघ्र शादी के लिए हर जने-खने को आशीर्वाद देता।
उसकी अलौकिक शक्तियों की धूम मची थी।
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