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देवदास

 

देवदास दीवाना है। पढ़ाई के पीछे पड़ा तो रुड़की से बी.टेक. करके ही चैन लिया। 

पैसों के पीछे पड़ा तो देश-विदेश में व्यापार फैला अरबों कमा लिए। सेक्रेटरी पारो के पीछे पड़ा तो कुल-मर्यादा, पढ़ाई-लिखाई, सामाजिक-आर्थिक स्टेटस कुछ नहीं सोचा। पारो गाँव गई और लाॅक डाउन हो गया। कर्फ़्यू लग गए। बस, गाड़ी सब बंद। नित्य देवू के फोन आने लगे। 

रुको देवदास 
साँस लो—
देखो, शहर का क्या हाल है? 
राजधानी में क्या हो रहा है? 
देश पर क्या बीत रही है? 
विश्व कहाँ जा रहा है? 
रुको देव रुको। 
मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकती। 
यह क्वारंटाइन काल है। 
यह समय अकेले ही काटना है। 
मैं तुमसे मुख नहीं मोड़ रही। 
तुम्हें नकार नहीं रही। 
अलविदा नहीं कह रही। 
बस कुछ दिनों की बात है। 

पर कोरोना ने दिन, सप्ताह, पखवारे, महीने-सब पार कर लिए। 

और लाॅक डाउन की ढील के बाद अपने घर गया देव अभी लौट कर नहीं आया। 

क्या वह किसी दुर्घटना का शिकार हो गया है? 

क्या वह कोरोना की चपेट में है? 

क्या उसने वहीं अपनी दुनिया बसा ली है? 

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