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ज़िन्दगी का दाँव

 
तुम्हारी मुश्किलों से 
वाक़िफ़ होकर भी 
तुम्हें 
कोई तसल्ली नहीं दे सकता 
क्योंकि
जानता हूँ 
कि तुम्हें 
इनकी ज़रूरत नहीं। 
 
समझता हूँ कि
तुम
लड़ रही हो 
अपनी जंग 
अकेले ही 
अपनी हिम्मत से। 
 
फिर सख़्त 
और सख़्त
लहजे में बदलती हुई 
तुम्हारी आवाज़ 
बनती है 
अपने समय का लोहा। 
 
जाने कितनी ही 
वर्जनाओं को 
चकनाचूर करते हुए 
तुम जीत रही हो 
ज़िन्दगी का हर दाँव 
ख़ुद को 
हार कर। 

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