अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अनोखे और मज़ेदार संस्मरण

यदि हम आँख-कान खोल के रखें, तो पायेंगे कि हमारे गाँव एक से एक अनोखे एवं मज़ेदार प्रकरणों के जन्म की उर्वरा भूमि हैं। 

आज सुबह दैनिक जागरण सामने रखा, तो मुख पृष्ठ पर समाचार दिखाई दिया - ‘शौहर झगड़ता नहीं, इसलिये तलाक़ चाहिये’। एक महिला ने शरई अदालत में क़ाज़ी के पास अर्ज़ी लगाई कि उसकी शादी को डेढ़ साल हो चुके हैं, और शौहर ने आज तक एक बार भी उससे झगड़ा नहीं किया है। इसलिये उसे तलाक़ चाहिये। फिर क़ाज़ी के सामने जाकर दृढ़ता से बयान दिया, “वह शौहर के ज़्यादा प्यार को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। वह न तो मुझ पर कभी चिल्लाया है और न उसने मुझे कभी उदास होने दिया है। न ही झगड़ता है। मैं ऐसे माहौल में घुटन महसूस कर रही हूँ। कोई  ग़लती करती हूँ, तो उसे माफ़ कर देता है। ऐसे शौहर के साथ वह नहीं रह सकती है।“

यह पढ़कर मन में गुदगुदी उठी। अतः पत्नी की ओर समाचार पत्र बढ़ाकर समाचार पढ़ने को कह रहा था कि मेरे फोन की घंटी बजी। मेरे हैलो कहते ही एक व्यक्ति की आवाज़ आई, “मैं आप के गाँव का र.द. बोल रहा हूँ। आप से मिलने आया हूँ। आप का मकान नम्बर क्या है?” मैंने मकान नम्बर बता दिया।

कुछ मिनट के बाद र.द. छह अन्य लोगों की मिनी-बारात के साथ प्रकट हुए और बड़ी आश्वस्ति के साथ एक आपराधिक प्रकरण में एस.पी. से सिफ़ारिश के लिये मुझसे अनुरोध करने लगे। र.द. का सिफ़ारिश हेतु आगमन और इतनी आश्वस्ति के साथ प्रस्तुतिकरण कुछ कम गुदगुदी करने वाली बात नहीं थी। यह वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने कुछ वर्ष पूर्व मेरे गाँव का घर ख़ाली पाने पर रात में उसमें घुसकर बड़ी आश्वस्ति के साथ चोरी की थी। फिर पुलिस द्वारा पकड़े भी गये थे। परंतु आज मुझसे अपनी सिफ़ारिश करवाने में उनकी आश्वस्ति में कोई कमी नहीं थी।

मैं र.द. के प्रस्थान के पश्चात उनकी आश्वस्ति से उत्पन्न अचरज पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न कर ही रहा था कि मेरे गाँव के शि.प. का फोन आया। पूर्ण आश्वस्ति के साथ अनुनय करते हुए बोले, “मेरे विरुद्ध केस को ख़त्म करने को आप किसी अधिकारी से कह दीजिये। बार-बार तारीख़ पर जाने से अब मैं बहुत परेशान हो चुका हूँ। बहुत पैसा भी ख़र्च हो चुका है।“

शि.प. का प्रकरण भी कम गुदगुदाने वाला नहीं है। शि.प. दलित वर्ग के हैं। यह बचपन से मेरे घर का एवं मेरी खेती का कार्य बड़ी निष्ठा से करते रहे हैं। 10 वर्ष पूर्व मेरे ग्राम में ग्राम सभा का चुनाव हुआ था। उसमें वह उम्मीदवार ग्राम प्रधान चुना गया था, जिसकी मेरे भतीजे ने जमकर ख़िलाफ़त की थी। अतः नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान मेरे भतीजे से दुश्मनी मानता था। उसने शि.प. को लालच दिया कि यदि वह मेरे भतीजे और उसके साथियों के ख़िलाफ़ एस.सी./एस.टी. ऐक्ट का मुकदमा लिखा दे, तो वह शि.प. को शासन से हज़ारों रुपये मुआवज़ा दिला देगा। शि.प. लालच में आ गये और गाँव से ग़ायब हो गये। उसकी पत्नी ने थाने में रपट लिखा दी कि मेरे भतीजे और उसके तीन साथियों ने शि.प. का गाँव से शहर जाते समय अपहरण कर लिया है। उसे जान से मार दिये जाने की आशंका है। प्रधान ने प्रेस में घटना को बढ़ा-चढ़ा कर छपवा दिया। कुछ दिन तक मेरे भतीजे व अन्य आरोपियों ने बड़ी परेशानी झेली। फिर शि.प., जो साज़िश के अंतर्गत अपनी बहिन के यहाँ चले गये थे, 15 दिन बाद गाँव लौट आये। पुलिस ने मुकदमे को झूठा पाकर शि.प. और उसकी पत्नी के विरुद्ध झूठा केस लिखाने हेतु चालान काट दिया।

अनोखी और गुदगुदी पैदा करने वाली बात यह है कि शि.प. महाशय अपनी बहिन के यहाँ से वापस आकर मेरे घर आये, बड़ों के पैर छुए और यथापूर्व ऐसे काम पर लग गये जैसे इस बीच कुछ हुआ ही न हो। आज उसी केस को समाप्त करा देने हेतु शि.प. महोदय का आश्वस्तिपूर्ण अनुरोध मेरे पास आया था।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अति विनम्रता
|

दशकों पुरानी बात है। उन दिनों हम सरोजिनी…

अनचाही बेटी
|

दो वर्ष पूरा होने में अभी तिरपन दिन अथवा…

अनोखा विवाह
|

नीरजा और महेश चंद्र द्विवेदी की सगाई की…

अपनी विलक्षण अनुभूतियाँ
|

(जब अपने मुख पर स्व. पापा की छवि देखी) आज…

टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2021/07/16 11:32 AM

र.द. ...? शि.प. ? पूरी तरह स्पष्टीकृत करें आदरणीय

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य कविता

सामाजिक आलेख

कहानी

बाल साहित्य कहानी

व्यक्ति चित्र

पुस्तक समीक्षा

आप-बीती

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं