बदलता मौसम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. ज़ेबा रशीद21 Feb 2019
बदलते समय की
हलचल में अब
खोखली हुई मुस्कानें
दिल से प्यार का
जज़्बा गुम है
बेवफ़ाई का मौसम है
अब मतलब के
बाज़ार में
तेरा-मेरा रिश्ता गुम है।
हर दिल में लालच है
दौलत चाहे
कितनी मिल जावे
आदमी का दिल
ख़्वाहिशों का जंगल है
स्वार्थ के सागर में
सच्चाई का गुम है।
हर दिल में
अजीब सी हलचल है
बदलते समय की
हलचल में अब
खोखली हुई मुस्कानें
हर दिल से प्यार का
जज़्बा गुम है
समय की ठोकर खा कर
सुनहरा सपना गुम है
अब मतलब के
बाज़ार में
तेरा-मेरा रिश्ता गुम है।
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