दुल्हन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. भावना कुँअर5 Oct 2007
सजाया
सँवारा
फिर ले चले
जश्न मनाया
दुनिया को दिखाया
शोर मचाया
फिर ....
मौन हो चले
किसी का ख्याल भी न आया
ना ही किसी सवाल से घबराया
दिल में दर्द भी न आया
अंजाम दिया और चेहरा छुपाया
अश्कों को बहाया
थोड़ा सा
बस थोड़ा सा मातम मनाया
फिर ....
फिर क्या?
फिर वही ....
नहलाया
धुलाया
फिर से सजाया
फिर से सँवारा
और ले चले
पर इस बार
दुनिया को नहीं दिखाया
चुपचाप ही जलाया
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