ईंट का गीत
काव्य साहित्य | कविता सुशांत सुप्रिय2 Jun 2016
जागो
मेरी सोई हुई ईंटों
जागो कि
मज़दूर तुम्हें सिर पर
उठाने आ रहे हैं
जागो कि
राजमिस्त्री काम पर
आ गए हैं
जागो कि तुम्हें
नींवों में ढलना है
जागो कि
तुम्हें शिखरों और
गुम्बदों पर मचलना है
जागो
मेरी पड़ी हुई ईंटों
जागो कि मिक्सर
चलने लगा है
जागो कि
तुम्हें सीमेंट की यारी में
इमारतों में डलना है
जागो कि
तुम्हें दीवारों और छतों को
घरों में बदलना है
जागो
मेरी बिखरी हुई ईंटों
जागो कि
तुम्हारी मज़बूती पर
टिका हुआ है
यह घर-संसार
यदि तुम कमज़ोर हुई तो
धराशायी हो जाएगा
यह सारा कार्य-व्यापार
जागो
मेरी गिरी हुई ईंटों
जागो कि
तुम्हें गगनचुम्बी इमारतों की
बुनियाद में डलना है
जागो कि
तुम्हें क्षितिज को बदलना है
वे और होंगे जो
फूलों-सा जीवन
जीते होंगे
तुम्हें तो हर बार
भट्ठी में तप कर
निकलना है
जागो कि
निर्माण का समय
हो रहा है
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