हिंदुस्तानी नारी
काव्य साहित्य | कविता महेश पुष्पद8 Jan 2019
सृष्टि का आधार है,
जीवन का त्यौहार है,
जिसके त्याग तपोबल से ही,
झुकता ये संसार है,
जिसके क्रोधानल की ज्वाला,
तीन लोक पर भारी है,
जग को सच की राह दिखाती,
हिन्दुस्तानी नारी है ।
सहनशीलता धरती सी है,
सागर सी मर्यादित है,
मानव के जीवन की महिमा,
होती जिससे परिभाषित है।
वेद-वाक्य है वाणी जिसकी,
देवासुर आज्ञाकारी हैं,
जग को सच की राह दिखाती,
हिंदुस्तानी नारी है।
माँ के आँचल की घनी छाँव,
वो राखी का त्यौहार है,
पत्नी बनकर जो हर पुरुष के,
जीवन का आधार है।
परहित अपना सब कुछ देकर,
जिसमें इतनी ख़ुद्दारी है,
जग को सच की राह दिखाती,
हिंदुस्तानी नारी है।
घर की मौन नियंता है जो,
सुख-समृद्धि दाता है,
स्वयं व्यथित हो सबके दुःख को,
जिसे मिटाना आता है,
सृजन शक्ति का यशोगान हो,
ये कितनी पर उपकारी है,
जग को सच की राह दिखाती,
हिंदुस्तानी नारी है।
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Deepak singh Rajput 2023/03/08 11:49 AM
अभिदा शब्द शक्ति का उम्दा समावेश किया है।