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कोई अंजाम नहीं आया

मुहब्बत का सबक़ कोई काम नहीं आया, 
कहानी ख़त्म हुई कोई अंजाम नहीं आया। 
 
रातें गुज़ार दीं जिसकी यादों में हमने, 
उसे हमारा ख़्याल एक शाम नहीं आया। 
 
मंज़िलों का सुकूं मुबारक हो तुम्हें, 
अपने हिस्से में अब तक मुक़ाम नहीं आया। 
 
था ख़्याल कि आयेगा सुकूं कभी तो दिल को, 
गुज़र गई उम्र तमाम नहीं आया। 
 
इन्तज़ार में हैं आज भी अश्कों से भीगे ख़त, 
पलकों को सुखाने कोई पैग़ाम नहीं आया। 
 
पूछा जो लोगों ने मेरे ग़म का फ़साना, 
सब सुना दिया मगर तेरा नाम नहीं आया। 
 
क्या कहें कि तेरी ख़ातिर क्या क्या न सहा, 
हम रुस्वा हुए तुझ पर इलज़ाम नहीं आया। 
 
कब का गुज़र चुका तेरी यादों का मौसम, 
सब कुछ तो ठीक है मगर आराम नहीं आया। 
 
दर्द में मुस्कुराने का हुनर तो सीखा, 
इश्क़ की गलियों से दिल नाक़ाम नहीं आया। 

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