जीने की राह
काव्य साहित्य | कविता महेश पुष्पद1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मंज़िल पर अपनी ध्यान दे,
तू ख़ुद को एक पहचान दे।
मत बन तू दिन के तारे सा,
बन सूरज के उजियारे सा।
मत भटक जगत में लक्ष्यहीन,
मत कर अपने मन को मलीन।
तू शुद्ध बुद्धि, तू शुद्ध मन,
तू चेतन है, तो दिख चेतन।
हो उठ खड़ा पुरुषार्थ कर,
हो सके अगर परमार्थ कर।
कर कर्म ऐसे कि नाम हो,
तेरे नाम से ही काम हो।
माना कि पथ है कठिन बहुत,
पल-पल मुश्किल हर दिन बहुत।
कष्टों में रहकर ज़ोर लगा,
जितना है, थोड़ा और लगा।
जीवन को मीठा गान बना,
तू ख़ुद को नेक इंसान बना।
राहें स्वयं बन जाएँगी,
मुश्किलें माला पहनाएँगी।
पत्थर जब आग में जलता है,
तब कहीं स्वर्ण में ढलता है।
आंधियाँ नहीं जो सहता है,
वो वृक्ष नहीं फल देता है।
तू एक नया आग़ाज़ कर,
जो करना है, वो आज कर।
यूँ तो दुनिया में शोर है,
कल करने वाले और हैं।
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