ख़ामोशी
काव्य साहित्य | कविता दीप्ति शर्मा30 Apr 2014
माँग करने लायक
कुछ नहीं बचा
मेरे अंदर
ना ख़्याल, ना ही
कोई जज़्बात
बस ख़ामोशी है
हर तरफ अथाह ख़ामोशी
वो शांत हैं
वहाँ ऊपर
आकाश के मौन में
फिर भी आँधी, बारिश
धूप, छाँव में
अहसास करता है
ख़ुद के होने का
उसके होने पर भी
नहीं सुन पाती मैं
वो मौन ध्वनि
आँधी में उड़ते
उन पत्तों में भी नहीं
बारिश की बूँदों में भी नहीं
मुझे नहीं सुनाई देती
बस महसूस होता है
जैसे मेरी ये ख़ामोशी
आकाश के मौन में
अब विलीन हो चली है।
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