खुरचे हुए शब्द
काव्य साहित्य | कविता दीप्ति शर्मा9 May 2014
खुरचे हुए शब्द
नाखूनों से, दाँतो से
और निगाहों से
बेजान हैं जान नहीं बची
वो अंडे भी तो टूट चुके हैं
उस घोंसले में बेवक़्त
और ढो रहा है भार
वो घोंसला
उन टूटे अंडों का
और तब से अब तक उसमें
कोई नया अंडा नहीं जन्मा
कहीं खुरच तो नहीं गया ??
वो घोंसला भी
शब्दों की तरह
ये शब्द तो पढ़े नहीं जाते
और उस घोंसले में भी तो
कोई रहने नहीं आता
कि कहीं खुरच के
बेवक़्त कोई और
अंडा फूट ना जाये।
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