मेरी बिटिया
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
प्रकृति का उपहार है बिटिया
युगों युगों का प्यार है बिटिया
छोटी सी मनुहार है बिटिया
घर घर का शृंगार है बिटिया
बड़ी मन्नत से पाया है उसे
बड़े स्नेह से पाला है उसे
ख़ूब नज़दीक से देखा है उसे
रोया हूँ जब तकलीफ़ में देखा उसे
चीख़ छोटी सी उसकी
अधीर कर देती है मुझको
उसकी प्यारी तुतलाती बातें
नई ऊर्जा से भर देतीं हैं मुझको
थक कर जब में चूर होता हूँ
पा लेती है मेरे आने की आहट
मुस्कुराती दौड़ी चली आती है
लिपट कर धो देती है थकावट
उसके नरम हाथों का स्पर्श
स्वर्गिक सुख दे जाता है
उच्चारण छोटे शब्दों का
सरगम गान सुना जाता है
सुंदरता अनुपम आँखों की
असीम सुधा रस बरसाती है
दंत क़तारें अधरों के बीच
दाड़िम सम सरसाती हैं
छोटे पाँवों के घुँघरू की
छम छम की स्वर लहरी में
कर्णप्रिय ध्वनि की धारा में
डुबो रही जो अमृत रस में
किलकारी छोटी सी उसकी
घर में ख़ुशहाली ले आती
तुतलाती प्यारी बोली उसकी
मन को शीतलता दे जाती। 
 
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