मुसाफ़िर
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मुश्किलें जिसको डरा दें,
है वह कैसा मुसाफ़िर
जिसको थका दे शूल पथ,
है वह कैसा मुसाफ़िर
हौसला वह क्या जिसे,
कुछ आँधियाँ पीछे हटा दें
ध्येय पथ के पंथी को,
पथ से अपने ही डिगा दें
मुस्कुरा कर चल मुसाफ़िर,
तुझको ही बढ़ना पड़ेगा
आँधियों के अंधड़ों से,
अविचल हो लड़ना पड़ेगा
सामने पहाड़ हो या मरू
तुझको है चलना
झुलसती गर्मी में तप कर,
सर्द रातों में है गलना
मौत मिल जाए अगर,
तो तुझे भिड़ना पड़ेगा
हे मुसाफ़िर कंटकों का,
सामना करना पड़ेगा
शूल पथ के ना हटेंगे,
धैर्य धर कर पार कर
पाँव की पीड़ा क्षणिक यह,
लक्ष्य पर ही ध्यान धर
भावना यदि जीत की तो,
मुस्कुराता चल मुसाफ़िर
ज़िंदगी की जंग में,
नित विजय तू कर मुसाफ़िर
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