स्टिल-बॉर्न बेबी
काव्य साहित्य | कविता सुशांत सुप्रिय2 Jun 2016
वह जैसे
रात के आईने में
हल्का-सा चमक कर
हमेशा के लिए बुझ गया
एक जुगनू थी
वह जैसे
सूरज के चेहरे से
लिपटी हुई
धुँध थी
वह जैसे
उँगलियों के बीच में से
फिसल कर झरती हुई रेत थी
वह जैसे
सितारों को थामने वाली
आकाश-गंगा थी
वह जैसे
ख़ज़ाने से लदा हुआ
एक डूब गया
समुद्री-जहाज़ थी
जिसकी चाहत में
समुद्री-डाकू
पागल हो जाते थे
वह जैसे
कीचड़ में मुरझा गया
अधखिला नीला कमल थी...
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डॉ सुनीता जाजोदिया 2021/07/06 01:36 PM
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