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व्यवहार

नम्रता ही जीवन का, हो केवल आधार
शील, सम्मान, विवेक का, जग में हो व्यवहार
शत्रु और मित्र न कोई, ये है सिर्फ़ विचार
मानव की पहचान है, बस उसका व्यवहार।
 
प्रेम बसा हो हृदय में, होता मंगलाचार
भाईचारा अपनाएँ, कर लें सब से प्यार
द्वेष, घृणा, कटुता का, न हो अब व्यापार
ख़ुशहाल ज़िंदगी की कुंजी, है सच्चा व्यवहार।
 
प्रेम पूर्ण व्यवहार से, होती सब की जीत
विचित्र है दुनिया बहुत, करें जीवों से प्रीत
सहयोगी बनकर सदा, बन जाएँ सच्चे मीत
परोपकार, मैत्री विचार, यह है उत्तम रीत।
 
प्रतिबिंबित मानवता सदा, अपने ही गुण-धर्मों से
बनता मानव श्रेष्ठ, सभ्य, संस्कारी निज कर्मों से
पहचान दिलाते त्याग - समर्पण, परहित जैसे भाव
है ये धरोहर रीतों की, अनुशासित मधुर स्वभाव।
 
मद में पड़ कर अहंकार के, भूले न सदाचार
जीवन के इस मंच पर, सदा रहे सद्विचार
मन के दर्पण पर कभी, बढ़े ना विष का भार
श्रेष्ठाचार व्यक्तित्व हो, अजर अमर व्यवहार।

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