यादें (डॉ. ज़ेबा रशीद)
काव्य साहित्य | कविता डॉ. ज़ेबा रशीद20 Feb 2019
तेरी यादों के फूल
दिन की हलचल में
व्यस्तता की धूप में
कुम्हला जाते हैं
लेकिन
रात्री के
नीरव क्षणों में
बादलों की तरह
मेरे ख्यालों में
छा जाते हैं
दुश्मन सी यादें
बेचैन कर जाती हैं
उनसे डरती हूँ
दूर भागती हूँ
लेकिन
सच्चाई यह है कि
यादें ही
मुझे दोस्त की तरह
सुलाती हैं
तुम्हें सपनों में
बुलाती हैं
तुम से मिलती हैं।
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