ये घर तुम्हारा है (कविता संग्रह) - एक परिचय
समीक्षा | पुस्तक चर्चा सुमन कुमार घई3 May 2012
ये घर तुम्हारा है (कविता संग्रह)
प्रकाशक : मेधा बुक्स
एक्स-11, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110 032
www.medhabooks.com
मूल्य : रु. 200.00 / £5.00 / $8.00
साहित्य जगत में तेजेन्द्र शर्मा का नाम जाना-पहचाना है। गद्य-साहित्य (विशेषकर कहानी-विधा) में वे जाने-पहचाने हस्ताक्षर हैं। पिछले लगभग दो दशकों से इंग्लैंड ही उनका निवास-स्थान है। तेजेन्द्र जी का यह कविता-संग्रह इसी तथ्य को मान्यता देता है कि एक प्रवासी भारतीय को अंततः अपने अपनाए हुए देश को ही स्वदेश के रूप में स्वीकार करना होता है और यह उचित भी है।
“मेरे भीतर का कवि / लेखक अपने आसपास के घटनाक्रम से जुड़ा रहता है। मेरे लिये इंगलैण्ड अब विदेश नहीं है - घर है मेरा। यहाँ जो कुछ घटता है मुझे उतना ही आंदोलित करता है जितना कि भारत का घटनाक्रम। आतंकवाद चाहे कश्मीर में हो, दिल्ली में हो या फिर लंदन में, मेरे मन पर उसके निशान एक-से बनते हैं। मैं शेरी ब्लेयर, टोनी ब्लेयर या डेविड ब्लंकेट पर व्यंग्य रचना रचने में गुरेज़ नहीं करता। इंगलैण्ड का पतझड़ दुनियां की सबसे रंगीन ॠतु है। मैं इस ॠतु से अछूता नहीं रह पाता। मेरे शहर हैरो में जो बदलाव आते हैं मुझे झकझोरते हैं। जहाँ अन्य हिन्दी प्रवासी लेखक भारत की ओर देख कर नॉस्टेलजिक हो जाते हैं मैं सोचता हूँ कि मेरा प्रवासी देश मुझ से क्या कह रहा है। टेम्स के आसपास का आर्थिक माहौल गंगा के आलौकिक महत्व से उसका सीधी तुलना करवाता है। मन आंदोलित होता है, और यही है वो भावना जो मुझ से कविता लिखवाती है।" - तेजेन्द्र शर्मा
परंतु इस निर्णय तक पहुँचने के लिये तेजेन्द्र ने जो मानसिक यात्रा की, वह इस काव्य संकलन में उभरती है। पाठकों तक अपने इसी दृष्टिकोण को पहुँचाने का सफल प्रयास ही “ये घर तुम्हारा है” काव्य-संग्रह की मूल भावना है। कवि का अंतर्द्वन्द्व कहता है—
मेरा पासपोर्ट नीले से लाल हो गया है
मेरे व्यक्तित्व का एक हिस्सा
जैसे कहीं खो गया है.
मेरी चमड़ी का रंग आज भी वही है
मेरे सीने में वही दिल धड़क़ता है
जन गण मन की आवाज़, आज भी
कर देती है मुझे सावधान!
और मैं, आराम से, एक बार फिर
बैठ जाता हूँ, सोचना जैसे टल जाता है
कि पासपोर्ट का रंग कैसे बदल जाता है।
पुस्तक को कई भागों में संकलित किया गया है। दूसरे भाग में तेजेन्द्र शर्मा एक शायर के रूप में सामने आते हैं। उनकी ग़ज़लें विषम शब्दजाल में नहीं उलझतीं बल्कि बहुत ही स्पष्ट और रोज़मर्रा की भाषा में अपनी बात कह जाती हैं –
घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है
शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया है।
जग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार
मैं जानता था उसने ही बरबाद किया है।
तू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता
जो ख़ुश करे वो आईना ईजाद किया है।
स्वयं तेजेन्द्र कहते हैं – “मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल है, जहाँ दो पंक्तियों में बड़ी बात कही जा सकती है. निदा फ़ाज़ली की दो पंक्तियों पर पूरी किताब लिखी जा सकती है - घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें / किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए” ।
ग़ज़ल के बाद “गुदगुदाता दर्द” में कविता व्यंग्य की ओर मुड़ती है। आमतौर पर प्रवासी साहित्य में जब व्यंग्य रचा जाता है तो लेखक विदेश में रहते हुए भी भारत की राजनीति ने नहीं उबर पाता। वही घिसे-पिटे लालू-पुराण से लिपटा रह जाता है लेखक। कई बार तो यह लगने लगता है कि प्रवासी हिन्दी लेखक अभी तक स्वतंत्र न होकर भारत के “हिन्दी-तन्त्र” की मान्यता प्राप्त करने के लिए अपने वर्तमान समाज के प्रति लेखक के दायित्व को भूल कर भूत में ही भटकता है। यहाँ पर “ये घर तुम्हारा है” में व्यंग्य तेजेन्द्र जी ने इंग्लैंड के समाज पर ही कसा है, चाहे वह राजनैतिक है या ‘दिखावे के हिन्दी प्रेमियों’ पर।
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई से क्या डरना
इनकी मार से तो आम जनता को ही है मरना
राजनेता को गरीब की समस्याओं से
भला क्या काम होता है
क्योंकि टोनी ब्लेयर के सपनों में तो सद्दाम होता है।
“आजकल शेरी ब्लेयर को अच्छी नींद आती है” में अगर इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को निशाने पर है तो हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाना है! में नकली हिन्दी प्रेमियों को भी माफ़ नहीं करते -
भारत का प्रवासी दिवस अंग्रेज़ी में मनाना है
लेकिन हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाना है।
पुस्तक सहज पठनीय है और मन को छूती और बहलाती है।
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