ज़िम्मेदारी
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
अपने हक़ के लिए लड़ें पर
भूल ना जाए ज़िम्मेदारी।
सड़कें जाम हुई धरनों से
परेशान जनता बेचारी।
तोड़ फोड़ और लूटपाट तो
जैसे चोली दामन की यारी।
हम अपना घर फूँक रहे हैं
यह कैसी है ज़िम्मेदारी।
छुआछूत और जाति पंथ से
कब मिलेगी हमें आज़ादी।
मोहरे बनकर राजनीति के
हमने आग भी ख़ूब लगा दी।
अब जागे हम और जगाए
सब की है यह ज़िम्मेदारी।
इस दलदल में फिसल ना जाए
शेष रही जो ईमानदारी।
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