आज की नारी
काव्य साहित्य | चोका कमला घटऔरा4 May 2016
आज की नारी
क्षमता है मुझ में
भरूँ उड़ान
दिखाऊँ ज्ञान गुण
नहीं अछूता
कोई कोना मुझ से
छू न पाऊँ मैं
'कल्पना' बन मैंने
छूआ था स्पेस
ऊच पदों पे बैठी
करती राज
जो सदियों से जानी
अबला गई
आज सबला बन
सम्भाले सीमा
सैनिक भेष धारे
खड़ी तैयार
आतंक मिटाने को
सशक्त बन
करने निगरानी
लाने को शान्ति
सीमाओं पर शत्रु
खड़े ताक में
बनाये देश द्रोही
बँटवारे की
पट्टी पढ़ाये, उन्हें
राह दिखाने
पथ भ्रष्ट हो गये
माँ के लालों को
मातृ भूमि महत्व
सिखाने हित
देश भक्ति के भाव
जगाये गी वो
गायें वन्दे मातरम्
हे ! जन्मभूमि
तेरी सदा जय हो
मिला के हाथ
चलेंगें अब साथ
होना पड़े न
जन्मदायिनी माँ को
लज्जित कभी
बिगड़े सपूतों को
नशे से हटा
राह उन्हे दिखाने
स्वदेश हित
आगे आयेगी नारी ।
धरा सी धैर्य धारी।
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