दस्तावेज़ समय का
काव्य साहित्य | कविता कमला घटऔरा28 Apr 2015
परिचय क्या शब्दों के खिलाड़ी का
खेलता जो भावो और विचारों से
जन जीवन से बीन-बीन कर
जन जीवन तक पहुँचाने को
अथवा, उन का दुःख दर्द
साँझा करने को, सुनाने को
और ख़ुद भी
लिखित रूप में प्रकट होने को
प्रकृति के नाना रूपों की तरह
मनों को हर्षाने को
दुःख दर्द भुलाने को
मन में उपजे भावों और विचारों से
मन हल्का करने को
चित्रित कर देता है छवि अनोखी
देख नहीं सकता मन जब
इंसानों पर होते अनाचारों को
लेखनी मजबूर करती है
उन्हें चित्रित करने को
बन जाये वो कथा, कहानी या कविता
लिखने वाले को नहीं पता।
बन जाता है दस्तावेज़ समय का।
लेखन में जगह तिथि का ज़िक्र हो न हो
दर्द हृदय का होता उजागर
हँसी हो गयी हो बन्दिनी जब
आँसू से होता सपनों का शृंगार
पीड़ा रहती ढीठ मेहमान बनी
आहों का होता विस्तार।
लेखनी रह न सके चुप-चाप
जब कोई किसी की सुने न
दूर तक कहीं पुकार
आये न पास कोई देने दिलासा
तब लेखनी उन का दर्द दर्शाने को
करती शब्दों की वर्षा की वर्षा
बहती दर्द भरे गीतों की नदियाँ।
भाव विरह का सहलाने को
मन बनजारों की तरह गाता सुनाता
दर्द भरी कथा जमाने की
जुल्मों की अत्याचारों की।
मानवों को राह दिखाने को।
धरती को स्वर्ग बनाने को।
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