दलबदलू
कथा साहित्य | लघुकथा कमला घटऔरा10 Mar 2017
सुरेश को आगे की पढ़ाई करने के लिये हॉस्टल गये अभी साल भी नहीं गुज़रा था कि पिता का पत्र मिला कि बेटे तुम कुछ दिन की छुट्टी ले कर घर आ जाओ तुम्हारी माँ तुम्हें बहुत याद करती है। उसकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती है। सुरेश ने सोचा ज़रूर माँ की तबीयत कुछ ज़्यादा ही ख़राब होगी। नहीं तो पापा ऐसा नहीं लिखते। उसने तुरन्त हफ़्ते की छ्ट्टी ली और घर आ गया।
माँ सचमुच कुछ अधिक ही बीमार थी, लेकिन बेटे को देखते ही तुरन्त उठ बैठी। जैसे बेटे का दर्शन माँ के लिये संजीविनी बन गया। हफ़्ते बाद सुरेश माँ के ठीक होने पर हॉस्टल लौट आया।
अब वह शादी-शुदा है। बाप भी बन गया। फिर भी माँ के प्रति उसके प्यार में परिवर्तन नहीं आया। पिता के गुज़र जाने के बाद उसने माँ को गाँव से अपने पास ही बुला लिया। माँ का बेटे के पास आना था कि सुरेश और उसकी पत्नी में रोज़ खटपट चलने लगी। पत्नी ताक में रहती कैसे इस बला को घर से निकाला जाया। रोज़ कोई न कोई कहानी घड़कर पति को सुनाती। पति चुपचाप सुनता रहता। एक दिन तो हद हो गई। माँ को रात में प्यास लगी उसने फ्रिज खोल कर ठंडा पानी निकाल कर क्या पी लिया घर में जैसे तूफ़ान आ गया।
सुरेश के काम से लौटने पर चाय नाश्ता परोसते समय पत्नी बोली, "तुम्हारी माँ का पेट है कि कुआँ दिन भर खा कर भी नहीं भरता रात को भी उठ-उठ कर खाती रहती है।"
"कभी तो घर आने पर दो मिनिट आराम करने दिया करो। आते ही शुरू हो जाती हो। माँ क्या सोचेंगी?" सुरेश ने सख्ती से कहा।
माँ को सुनाने के लिये ही बहू ने बात ज़रा ज़ोर से कही थी ताकि माँ को सुन जाये।
"मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कहा," पत्नी तुनक कर बोली।
पास बैठी माँ ताड़ गई। बोली, "कुछ खाने को नहीं उठी थी बेटे, गला खुश्क हो रहा था सोचा नींबू पानी पी लूँ। ठंडा पानी लिया था तेरे फ्रिज से। खाया तो कुछ नहीं।"
बेटे के दिल को भी ठेस लगी। वह कुछ नहीं कह सका पत्नी के आगे क्या बोलता। ख़ामोश रहा।
पूरी जिन्दगी तो पत्नी के साथ काटनी है। किसी नेता की तरह फ़ायदे वाले पक्ष में चला गया।
माँ की सफ़ाई उसे शर्मिंदा तो कर गई, लेकिन ज़ुबान पर जैसे ताला लग गया हो।
माँ दिल पर लगी इस बात से सारा दिन बुखार में पड़ी छटपटाती रही।
दूसरे दिन भी शाम को घर आने पर बेटे ने न माँ से बात की, ना हाल पूछा।
वहाँ रहने का कोई मतलब नहीं अब। माँ ने गाँव लौटने का फ़ैसला कर लिया। बेटे को बता दिया। बेटे ने एक बार भी नहीं कहा, मत जाओ माँ गाँव में अकेली कैसे रहोगी? वह तो दल बदलू हो चुका था।
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होम सुवेदी 2020/10/10 03:55 PM
बहुत अच्छी। आज समाज का हालात यही है।