आशाओं का रवि
काव्य साहित्य | कविता नेहा दुबे6 Feb 2017
नन्ही-नन्ही चिड़ियों ने
ची-ची के संगीत में लो फिर से
एक नई भोर का स्वागत कर दिया।
तारे भी रवि के आने का
संदेशा देकर अलविदा कर
धीरे-धीरे जाने को हैं।
लिए अँधेरा जो रात थी,
अब कुछ हल्की-हल्की होने को है।
हर रोज़ एक नया संदेसा
फिर से उम्मीद के सूरज को लेकर
किरणें देखो अम्बर में अपना अधिकार
जमाती हैं।
मद्धम-मद्धम भींनी सी ख़ुशबू
ले हवा जोश में बहती है।
ग़ुम होता तम बढ़ते रवि के आकार से।
लाल-लाल सी बिंदिया जैसा
किसी नारी का शृंगार हो मानो
फिर से आ गया एक नया दिन
लेकर आशाओं का रवि।
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