अनजानी राहें
काव्य साहित्य | कविता आचार्य शीलक राम15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नया मुक़ाम, अनजानी राहें।
संग उत्साह मिले वो जो चाहें॥
नई सोच, इरादा बुलन्द है।
यह जीवन लगे बस एक छन्द है॥
निर्भय होकर आगे बढ़ना।
विवेक संग विकास की सीढ़ी चढ़ना॥
दृढ़ संकल्प, वचन से न पीछे हटना।
श्रद्धा, विश्वास, प्रेम, इस धार पर डटना॥
प्रभु से मिलन कैसे हो साक्षात्कार।
आए कोई लेकर दीप, हटाने घोर अंधकार॥
आएगा कोई जब करने यह, अद्भुत चमत्कार।
सात्विक मन से करे हृदय स्वीकार॥
मत उलझ झूठी चाहों में।
जीवन बीते फिर आहों में॥
प्रभु में लगे ऐसे प्रीति।
शुद्ध होवे फिर सारी नीति॥
दूर बहुत है अभी वो मंज़िल।
अनजानी राहों में, डरता है दिल॥
लेकर नाम प्रभु का इस सहारे चल।
प्रदीप हाथ रख, जा पहुँचेगा तू मंज़िल॥
क्या अच्छा, क्या बुरा, समझ नहीं आता।
इन्हीं दो शब्दों में उलझ कर रह जाता॥
कुछ अच्छा चाहूँ करना, पर कर नहीं पाता।
समझ न आए क्या से क्या हो जाए॥
राहें ज़रूर हैं अनजानी।
लेकिन यहाँ पर ना कर नादानी॥
पतंगे की तरह होगी ज़िन्दगी गँवानी।
जीवन एक पड़ाव है, फिर करनी होगी रवानी॥
संसार है केवल एक झंझावात।
ये दिन ज़िन्दगी के फिर न आवत॥
जान ब्रह्मज्ञान को दूसरों को समझावत।
शास्त्र, ग्रंथों में लिखी निरी कहावत॥
दृढ़ संकल्प कर, प्रभु हैं तेरे साथ।
ना छोड़ेगा अधूरी मंज़िल में साथ॥
ना तुझसे फ़र्क़ करे, ना पूछे तेरी जात।
फ़ायदा ये फ़ायदा, ना देवे कभी मात॥
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