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देवनागरी भारती की सुनो

राष्ट्रभाषा मज़ाक बनी, प्रत्येक विभाग में उपेक्षित। 
यहाँ-वहाँ कहीं भी देखो, अनपढ़ हों चाहे शिक्षित॥1
  
ऐसा ग़ुलाम बनाया हमें, विदेशी भाषा लगती प्यारी। 
अपना खेल बिगाड़ रहे, हर दिन चढ़ती जाती उधारी॥2
 
सम्मानित विदेशी व्यवहार में, निज भाषा में हो अपमान। 
अपनी बोलने में हीनभावना, पग-पग पर व्यवधान॥3
 
राष्ट्रभाषा देवनागरी भारती, अपने दम पर चलती। 
न सरकार-न कोई संगठन, रूप नए-नए ढलती॥4
 
राजनीतिक दल यहाँ कोई भी, सभी अँग्रेज़ी के ग़ुलाम। 
अपना अपमान ख़ुद करवा रहे, छिपे में नहीं सरेआम॥5
 
चुनावपूर्व में वायदा किया, भूले चुनाव के बाद। 
राष्ट्रभाषा देवनागरी सुनो, चुनाव समय फिर याद॥6
 
‘स्व’-भावों की अभिव्यक्ति को, राष्ट्रभाषा ही सक्षम। 
विदेशी में पाखण्डी बनते हम, नहीं सत्य अभिव्यक्ति दम॥7
 
क्या विद्यालय-क्या महाविद्यालय, विश्वविद्यालय भारत सारे। 
विदेशी भाषा व्यवहार में, क़तई फोड़ दिए भाग हमारे॥8
 
शिक्षा-विभाग या डाक-विभाग, रेलवे-विभाग या रक्षा। 
अन्तरिक्ष-विभाग, अँग्रेज़ी बोलता, अँग्रेज़ी में प्रबन्धन शिक्षा॥9
 
होटल सारे अँग्रेज़ीमय सुनो, अँग्रेज़ी से सना व्यापार। 
वन-विभाग अँग्रेज़ी बोलता, विदेशी में पुलिस व्यवहार॥10
 
भारतीय सुनो हम नाम के, न्याय नहीं निज भाषा में। 
अटर-पटर अँग्रेज़ी बोलते, ज़मीनी भारत भरा निराशा में॥11
 
राष्ट्रभाषा के सब पीछे पड़े, नेता हों या अभिनेता। 
फ़िल्म उद्योग अँग्रेज़ी गंदगी में, दिवस-रात्रि सोता॥12
 
सड़क हमारी सब भारतीय, लेकिन अँग्रेज़ी में काम। 
परिवहन-विभाग काग़ज़ सब, प्रयोग विदेशीपन बदनाम॥13
 
वोट माँगते भारतीय भाषाओं में, अँग्रेज़ी में करते काम। 
जात ऐसी भारतीय नेता की, समस्त धरा शहर व गाम॥14
 
संवाद में जब तक दो-चार शब्द, अँग्रेज़ी के न आ जाएँ।
ग़लत-सलत इसको बोले बिना, सभ्य हम कैसे कहलाएँ॥15
 
नेता विरोधी देवनागरी भारती, धर्मगुरु विलासी हमारे। 
आजीविका भारतीय भाषाओं में, फिर भी भारती विरोधी सारे॥16
 
हीनभावना इतनी भरी, अँग्रेज़ी के बने हैं दास। 
मातृभाषा-राष्ट्रभाषा विलाप करें, बाक़ी कौन उल्लास॥17
 
पुतले बने हीनभावना से भरे, भारत धरा सब वासी। 
देवनागरी भारती से दूर किए, स्वयं नेता अँग्रेज़ी विलासी॥18
 
जागो भारतीय-जगाओ भारतीय, राष्ट्रभाषा का करो व्यवहार। 
कैसा भी परस्पर संवाद हो, बाहर-भीतर, घर-परिवार॥19
 
देवनागरी भारती भारत को, रख सकती है सुनो एक। 
नेता, धर्मगुरु, सुधारक सब; सुनो भारतवासी प्रत्येक॥20
 
चुनाव समय जब वोट माँगने आएँ, सत्ता में आने के बाद। 
पूछते रहो अपने नेताओं से, भारती की क्यों न आई याद॥21
 
नेताओं के ही भरोसे मत रहो, इन पर दबाव बनाओ। 
किसी एक का यह काम नहीं, अधिकांश भारतीय चले आओ॥22
 
भारत भारतीय भाषा बोल सकता, असम्भव विदेशी में बोलना। 
भारत भारत तभी बन पाऐगा, निज भाषा में शुरू हो डोलना॥23
 
सही आज़ादी तभी आ पाएगी, जब हम भारतीय भाषा बोलें। 
वास्तव में हम क्या कहना चाहते, रहस्य चित् के खोलें॥24
 
भारतीय नेता सब पाश्चात्य सोच के, ऐसा ही चाहते विकास। 
स्व-भाषाओं के नित व्यवहार बिना, नहीं मिला कुछ ख़ास॥25
 
तारे टूटकर सब नीचे गिरें, चंद्रमा कहीं दूर चला जाए। 
धरा हमारी खण्ड-खण्ड बिखरे, भारती बिन भारत न बन पाए॥26
 
कोई अदृश्य शक्ति न आएगी, हमारी मदद करने को। 
निज प्रयास से सब होगा यह, देवनगारी भारती उभरने को॥27
 
केन्द्रीय नेतृत्व ईमानदार यदि, पलभर में कर सकता सम्भव। 
हमारा भारत-हम सब भारतीय, कुछ भी नहीं हमें असम्भव॥28
 
बिना किसी भी सहयोग के, देवनागरी विश्वभाषा बनी।
करोड़ लोग इसे बोलते, सरलता-सहजता सुनी॥29
 
सर्वाधिक लोग धरा पर सुनो, देवनागरी बोल रहे। 
झूठ इसमें नहीं रत्तीभर नहीं, हर सर्वेक्षण इसे कहे॥30
 
साहित्यकारों की सोच ठीक हो; लेखक, कवि, अधिकारी। 
देवनागरी विश्व पर राज करे, यदि सहयोग मिले सरकारी॥31

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