अंत से पहले मिलनी है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अंकेश अनन्त पाण्डेय15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
ख़्वाहिश, जो मुकम्मल
कब से ही ना हुई है
राहें ही सफ़र में
सपनों के संग चली हैं
इस मोड़ पर मुसाफ़िर
अक़्सर ही रुक गए थे
मंज़िल की कोई, आहट
ना पाके थम गए थे
अब है, यही गुज़ारिश
तुम साथ मेरे चल दो
पास ही है साहिल
अटल सी आस भर दो
यूँ तो गिरते गिरते
आँखों में ख़्वाब भरते
चलते हुए शहर में
गाँवों के कुछ, हैं क़िस्से
माँझी की आँख कब से
देखने को मंज़र
तन का लहू विचरता
धड़कनों से कहता
इंद्र को जगाए
कर्म ऐसा कर तू
प्रणाम कर अनंत को
भीष्म सा निखर तू
तुम अभी खड़े हो
इस वक़्त को सँभालो
उस पार है वो मुमकिन
जिस के लिए ढले हो
हो जाएगी तुम्हारी
जिस के लिए अड़े हो
तमन्ना को फूल बना के
खिलाने ही तो चले हो
मिट्टी में बनके मिट्टी
सीखना है मिलना
हिम शिखर पे ध्यान
गल के, भी है धरना
वो आग भी जलाए
तो पवन सा बहना
मेरी प्यास है समंदर
कह राह पार करना
छुपी परे आयामों के
जो दृग में मंज़िल है
निर्देशित होकर सत्ता से
अंत से, पहले मिलनी है
अंत से, पहले मिलनी है
अंत से, पहले मिलनी है!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं