औरतें
काव्य साहित्य | कविता नोरिन शर्मा15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
खिलखिलाती धूप सी
औरतें
अलसुबह चूल्हे को लीपती
गुनगुनाती हैं
अलसाई तंद्रा को भगाने
खदबदाते पानी के धुएँ में
तलाशती हैं
ख़ुशियों की फ़रमाइशें
और
नन्हे हाथों में
चाँद सी रोटी थमा
बोसा लेके
भरपूर मुस्कुराती हैं।
पूरे दिन को
ठेंगा दिखा
चल पड़ती हैं
पसीने से नहाने . . .
एक बार फिर
हौसला
कुतरा जा रहा है
जानती हैं वो;
फिर भी
नहीं टिकती खाट पर
सुस्ताने दो घड़ी भी!!!
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