बापू के बन्दर
काव्य साहित्य | कविता के.पी. सक्सेना 'दूसरे'16 Oct 2007
1.
याद दो दिन साल में,
यूँ ही तुम्हें करते नहीं
बिन तुम्हारे नाम के
हम फूलते फलते नहीं,
हो ना जाएँ आपके
’पदचिह्न’ धूमिल इसलिए,
पूजते बापू उन्हें
उनपर कभी चलते नहीं।
2.
देख सुनकर भी
ना पहला बोलता
दूसरा सुनता नहीं
जो बोलता
चौंकते क्यों
सीख ये तुमने ही दी,
तीसरा सुनकर
ना आँखें खोलता
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