बातों बातों में
काव्य साहित्य | कविता नेहा शुक्ल बर्रेत्तो1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे
रूठे हुए को मानना तो कोई तुम से सीखे
सोचा, तुम से अब कभी न बोलूँगी,
दिल की बातें दिल ही में रखूँगी
पर बदलते मौसम की तरह तुम
हमेशा लौट आते हो,
कुछ ऐसा कहकर
होंठों पर हँसी छोड़ जाते हो
तुम बिन लम्हे पड़ जाते हैं फीके
हाँ बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे
. . . तुम में क्या बात है कि खिंची चली आती हूँ,
लाख चाहूँ पर ख़ुद को रोक ना पाती हूँ
थक जाऊँ जो ले ले कर तुम्हारा नाम,
तो काग़ज़ क़लम लेकर शुरू हो जाती हूँ
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