बूँदें बरसात की
काव्य साहित्य | कविता नेहा शुक्ल बर्रेत्तो1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बूँदों ने बरसात की कुछ ऐसा समां बाँधा है
बुझ गयी है प्यास, फिर भी
दिल में है इक आस फिर भी
ढूँढ़ते हैं नाम उनका हाथों की लकीरों में
जकड़ रखा है जाने किस एहसास ने
अनदेखी ज़ंजीरों में
कुछ तुम करो कुछ हम करें
क़तरा क़तरा सागर को भरें
साथ यह तुम्हारा जैसे किसी कटी पतंग का माँझा है,
जैसे हीर को तरसता आज भी कोई राँझा है
कि बूँदों ने बरसात की कुछ ऐसा समां बाँधा है
बूँदों ने बरसात की कुछ ऐसा समां बाँधा है
छोड़ दिया है साथ फिर भी तुम्हीं को तरसता हूँ
भटके हुए बादल की तरह कभी बेवजा बरसता हूँ
न होना तुम्हारा भी देता एक उम्मीद कोई इरादा है
लौट कर आओगे एक दिन यहीं बस ख़ुद से यह वादा है
कि बूँदों ने बरसात की कुछ ऐसा समां बाँधा है
बूँदों ने बरसात की कुछ ऐसा समां बाँधा है
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