बचपन
काव्य साहित्य | कविता सीमा मेहता15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
खुले आसमान में लहराती पतंग सा,
चमकते हुए इंद्रधनुष के सतरंग सा।
बड़ा मासूम-अल्हड़-मस्त है ये बचपन,
नवयौवन में प्रवेश की लिए उमंग सा॥
शांत मानस चेहरे पर होता भोलापन,
शरारतें-नादानियाँ फिर भी सबसे अपनापन।
उदासियों से दूर मुस्कुराते हास्य-व्यंग्य सा,
बड़ा मासूम-अल्हड़-मस्त है ये बचपन,
नवयौवन में प्रवेश की लिए उमंग सा॥
खेलकूद से रहता है तन में लचीलापन,
न सुर न ताल फिर भी वाणी में सुरीलापन।
बनावट कैसी भी हो समझे ख़ुद को भुजंग सा,
बड़ा मासूम-अल्हड़-मस्त है ये बचपन,
नवयौवन में प्रवेश की लिए उमंग सा॥
ईश्वर की मूरत सा झलकता सादगी सा सौम्यपन,
जैसे भक्तिमय सुगन्धित फूलों का सा अर्पण।
आराधना को लालायित साधक की तरंग सा,
बड़ा मासूम-अल्हड़-मस्त है ये बचपन,
नवयौवन में प्रवेश की लिए उमंग सा॥
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