सिन्दूर
काव्य साहित्य | कविता सीमा मेहता15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
भर माँग में सिन्दूर, दुलहन तुम्हें बनाया,
ख़ुशियों की सौग़ात लिए संग अपने ले आया।
एक नई दुनिया बसाने का सपना लिए आँखों में,
हमक़दम बन सात फेरों में, सप्त वचनों को पाया।
खिल उठा मेरा घर आँगन तुम्हारे आने से,
नाच उठा मन मयूरा मेरा तुम्हारे आ जाने से।
तेरी हया तेरी मुस्कुराहट मासूम सी मेरी प्रिया,
आके मेरे जीवन में हरपल फूलों सा महकाया।
चलो तुम्हें ख़ुशनुमा वादियों में ले चलूँ,
सिन्दूर संग लेना रोज़ अब रोज़ अब तेरी माँग भरूँ।
बिताएँगे पल वो सिर्फ़ तेरे और मेरे होंगे,
जाते वक़्त सदा सुहागन का आशिष तुमने पाया।
वो महकती सुबह प्यार बरसाती वो रंगीन रातें,
मेहँदी रचे हाथ तेरे वो प्यारी प्यारी बातें।
रखूँगा ख़्याल तेरा ता उम्र साथ तेरा निभाऊँगा,
तुमने हर लम्हे को बड़ी ख़ूबसूरती से सजाया।
मगन थे हम अपनी ही हसीन दुनिया में,
हर ग़म से कोसों दूर सुकून की निंदिया में।
अचानक आया कोई तहस नहस करने सब,
पूछा नाम मेरा पर मैंने नहीं बतलाया।
जब आख़िर में कह दिया कि ये नाम है,
कहो आपको हमारे नाम से कोई काम है।
चन्द सेकंड में ही तुम्हारा सिन्दूर उजड़ा,
माफ़ करना प्रियतमा मैं कोई वचन ना निभा पाया॥
आगे की कहानी दुलहन की ज़ुबानी
एक झटके में मंज़र बदल गया,
सिन्दूर का लाल रंग ख़ून बन गया।
दाग दी गोलियाँ मेरे सुहाग पर,
ज़रा सा भी दरिंदो को रहम न आया
क्या बिगाड़ा था उनका मेरे सुहाग ने
क्या पीड़ आएगी किसी को संसार में?
काश कोई तो इंतिक़ाम ले इस कुकर्म का
तब समझा दर्द औरत का औरत ने
तब उजड़े सिन्दूर को मेरे सम्मान मिला
अपने मिशन को ऑपरेशन सिन्दूर नाम दिया
ग़ुबार मेरे दुःख का उनका जोश बना
नायिका बन खलनायकों पर वार किया
पहलगाम की धरा पर जो क़त्ले आम हुआ
छब्बीस जानों का ख़त्म नामो निशान हुआ
टूट पड़ी तब सेना सोफिया-व्योमिका की
आतंकवादी ख़ात्मे के नाम अभियान हुआ
सिन्दूर का बदला लेने ऑपरेशन सिन्दूर चला
साथ हर तरफ़ से भारत सरकार का मिला
हिम्मत ऐसी घिनौनी अब न करना
अभी तो एक प्रतिशत ही ऑपरेशन सिन्दूर चला
शत प्रतिशत का नज़ारा दुश्मनों सोच लो
अपने नापाक मंसूबों को रोक लो
वरना फ़ौलादी सेना से बच न पाओगे
आकर भारत के चरणों में धोक लगाओगे।
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