नारी
काव्य साहित्य | कविता सीमा मेहता15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मत कर परवाह कि ये दुनिया क्या कहेगी।
कुछ भी हो दुनिया कुछ न कुछ तो ज़रूर कहेगी॥
राह अगर सच्ची और अच्छी है तो मत डर,
ज़िन्दगी तेरी है साथ अपनों का, जी खुलकर।
बेदाग़ दामन पर कोई दाग़ फिर तू क्यों सहेगी,
कुछ भी हो दुनिया कुछ न कुछ तो ज़रूर कहेगी॥
ये क्या पहना? ये क्यों पहना? बातें तो होंगी,
यहाँ क्यों जाना? वहाँ क्यों जाना? कहती होगी।
मर्यादाओं का भान तुझे है, तू क्यों उसे तोड़ेगी?
कुछ भी हो दुनिया कुछ न कुछ तो ज़रूर कहेगी॥
नज़र का इलाज है नज़रिये का नहीं होता है,
लोग क्या कहेंगे? सोचकर क्यों ख़ुद को खोता है?
कब तक ये दुनिया अपनी ही दुनिया से डरेगी?
कुछ भी हो दुनिया कुछ न कुछ तो ज़रूर कहेगी॥
कामयाब बन, अपनी मंज़िल पाकर मत रुकना,
राह के रोड़ों के सामने कभी भी मत झुकना।
ये दुनिया अपना स्वभाव कभी न बदलेगी,
कुछ भी हो दुनिया कुछ न कुछ तो ज़रूर कहेगी॥
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