बहू का रिश्ता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रचना शर्मा1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
नई दुलहन का होता है
प्यारा सा होता है ससुराल,
सारे रिश्ते नए-नए होते हैं
उनमें होता है प्यार।
धीरे-धीरे समय बीतता जाता है
तब होती है तकरार—
शुरू में तो तुम तो बहुत अच्छी थी . . .
अब क्यों बदले तेरे विचार?
रिश्तों की उधेड़बुन में फँस जाता है परिवार
सास कहती पराई है पराए घर से आई है—
ससुर को तो तूने बीमार कर दिया कैसी तेरी चतुराई है।
पति कहता क्या देखा है तूने अपने घर में
जेठ-जेठानी ताने मारते
माता-पिता के संस्कारों को कोसा जाता
ख़ुद के बच्चे भी नहीं समझते
कैसा है औरत का अभिमान?
हमेशा झुक कर रहना—
क्या यही एक बहू की है पहचान?
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shaily 2024/09/30 07:35 AM
सही स्थिति बताती सुन्दर रचना।